NainiTal से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामगढ़ के मीरा कुटीर में इन दिनों काफी हलचल है। पिछले महीने केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय के प्रतिनिधि जगदीप सिंह यहांआए थे। तब से लगभग हर रोज ही कोई न कोई अफसर, राजनेता और साहित्यकार घने हरे वृक्षों के मध्य स्थित मीरा कुटीर की रौनक बढ़ा रहे हैं। इसकी वजह मीरा कुटीर में 'महादेवी वर्मा सृजन पीठ' में बन रहा 'राइटर्स होम' है। करीब 90 साल पहले विख्यात कवित्री और साहित्यकार महादेवी वर्मा द्वारा स्थापित मीरा कुटीर में बन रहे इस राइटर्स होम'को लेकर साहित्यकार काफी उत्साहित हैं। कहा जा रहा है कि यह राइटर्स होम'साहित्यिक गतिविधियों और साहित्यकारों के मिलन केन्द्र के रूप में अपने किस्म का पहला केन्द्र होगा।
राइटर्स होम का निर्माण प्रसिद्ध कथाकार अमृत लाल नागर की स्मृति में किया जा रहा है। इसके लिए केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने 87 लाख रुपए महादेवी सृजन पीठ को अनुदान दिया है, जो कि कुमाऊं विश्वविद्यालय के अधीन है। राइटर्स होम और उससे जुड़ी परियोजनाओं का निर्माण पेयजल निगम द्वारा किया जा रहा है। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के प्रतिनिधि उन्ही परियोजनाओं के काम की प्रगति का निरीक्षण करने यहां आए थे और अन्य अधिकारी, राजनेता व साहित्यकार भी इस मकसद से रामगढ़ आ रहे हैं।
ज्ञात हो कि महादेवी वर्मा 1934 मैं बद्रीनाथ यात्रा पर जाते समय यहां आई थी। यह स्थान उन्हें इतना अधिक मनोरम और आकर्षक लगा कि बद्रीनाथ से लौटने पर उन्होंने यहां एक स्थानीय निवासी से मकान खरीद लिया और अपनी प्रिय कवित्री मीराबाई के नाम पर उसका नाम मेरा कुटी रखा था। महादेवी वर्मा उससे 5 साल पहले 1929 में नैनीताल आई थी। उन दिनों महात्मा गांधी नैनीताल के ताकुला आश्रम में रह रहे थे। गांधी जी से भी उनकी मुलाकात हुई थी। गांधी जी की प्रेरणा से ही उन्होंने स्थानीय महिलाओं का संगठन उत्तरायण बनाया था।
रामगढ़ में मीरा कुटीर की स्थापना के बाद महादेवी वर्मा हर साल यहां आकर रहती और अपना साहित्य सृजन करती थीं। यही उन्होंने हिमालय पर लिखी गई हिंदी की कविताओं का संकलन किया था और कई कहानियां वी कविताएं लिखी थी। महादेवी वर्मा गर्मियों में जब रामगढ़ आती थीं तो तो कई साहित्यकार और विद्वान उनसे मिलने यहां आते थे।
उस दौरान मीरा कुटीर सहित पूरा क्षेत्र कविता पाठ व कवि सम्मेलनों, काव्य गोष्ठियों और सहित्य जैसी साहित्यिक गतिविधियों से गुजायमान रहता था। हिन्दी साहित्य के स्वनाम धन्य कवि सुमित्रानंदन पंत, मैथिलीशरण गुप्त, इला चंद्र जोशी, वासुदेवशरण अग्रवाल, अज्ञेय आदि अनेक साहित्कारों का पदार्पण यहां हुआ है। लेकिन 1987 में महादेवी वर्मा के निधन के बाद सबकुछ समाप्त हो गया। महादेवी वर्मा ने जिस व्यक्ति को मकान की देखरेख के लिए रखा था उसने मकान पर कब्जा कर लिया।
कुमाऊं विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर और साहित्यकार प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’ जी को इलाहाबाद के अपने किसी साहित्यकार मित्र से जब मीरा कुटीर की दयनीय स्थिति का पता चला तो उन्होंने उत्तराखंड सरकार से मीरा कुटीर के उद्धार के लिए पत्राचार किया और उसे कुमाऊं विश्वविद्यालय को हस्तातंरित करने की मांग की। उसी क्रम में मीरा कुटीर में महादेवी वर्मा ने साहित्यिक कृतियों का जो संग्रहालय बनाया था उसका नाम ‘महादेवी वर्मा संग्रहालय’ कर जीर्णोद्धार किया गया। 2002 मेंउत्तराखंड सरकार ने मीरा कुटीर परिसर में एक अन्य भवन का निर्माण कर प्रसिद्ध साहित्यकार शैलेश मटियानी की स्कृति में ‘शैलेश मटियानी पुस्तकालय’ बनवाया। अप्रैल 2006 में मीरा कुटीर परिसर में महादेवी वर्मा की मूर्ति स्थापित की गई और कुमाऊं विश्वविद्यालय के अधीन ‘महादेवी वर्मा सृजन पीठ’ की स्थापना की गई। कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपमि को पीठ का पदेन अध्यक्ष नियुक्त किया और प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’ संस्थान के पहले निदेशक/सचिव नियुक्त किए गए।
महादेवी सृजन पीठ आज न केवल कुमाऊं बल्कि हिंदी साहित्य पर रुचि रखने वाले देश-विदेश के साहित्यकारों और शोध छात्रों के अध्ययन और अनुसंधान के केंद्र के रूप में जाना जाता है। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से बन रहा ‘राइटर्स होम’ इस दिशा में निश्चित ही मील पत्थर सिद्ध होगा। इसके लिए जरूरी है कि महोदवी वर्मा सृजन पीठ की स्वायत्तता को बनाए रखते हुए उसे राजनीति और नौकरशाही के प्रभाव से मुक्त रखा जाए।
इन्द्र चन्द रजवार



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