Asian Games :राम बाबू की कामयाबी से गौरवान्वित हुई है मनरेगा स्कीम


 आप मनरेगा की लाख बुराई कर सकते हैं और शासन और स्थानीय निकायों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण इसका लाभ गरीबों को न मिलने का तर्क देकर इसकी उपयोगिता खारिज कर सकते हैं। लेकिन ग्रामीण गरीबों का यह एक ऐसा अधिकार है जिससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण करने के साथ-साथ कामयाबी की बुलंदियां भी छू सकते हैं। एशियन गेम्स में 35 किमी की दौड़ में कांस्य पदक जीतने वाले राम बाबू इसकी ताजा मिसाल हैं।

सोनभद्र जिले के एक एक गरीब परिवार में जन्मे राम बाबू ने यह सफलता हासिल कर अपने माता-पिता, गांव, जिले और देश का ही नहीं संकट के समय उन्हें आजीविका का सहारा देने वाली मनरेगा स्कीम का नाम भी गौरवान्वित किया है। पदक जीतने के बाद न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात करते राम बाबू ने कहा कि वे अपने पिता के अकेले बेटे हैं, परिवार में उनके माता-पिता और दो सदस्यों सहित पांच आदमी है। पिता मजदूरी करते थे, उनकी महीने की आमदनी 3 हजार रुपए से भी कम थी। पिता का हाथ बढ़ाने के लिए उन्हें बनारस जाकर वेटर का काम करना पड़ा, जबकि उनकी रुचि बचपन से ही खेलों में थी और एक खिलाड़ी के तौर पर नाम कमाना चाहते थे।

वाराणसी में उनकी मुलाकात स्पोट्स कोच चंद्रभान से हुई। वे वेटर की नौकरी के साथ-साथ कोचिंग भी लेने लगे। लेकिन कोचिंग में साथी खिलाड़ी वेटर होने के कारण उनका मजाक उड़ाते रहते थे। इससे खिन्न होकर वे वेटर की नौकरी और कांचिंग छोड़ कर अपने गांव लौट गए। 2019 में वे ‘साई कांचिंग सेंटर’ में दाखिला लेने भोपाल चले गए। साईं सेंटर कोच को जब उनके बारे में पता चला तो एडमिशन देने से इंकार कर दिया लेकिन राम बाबू कोच को मनाने में कामयाब हुए और कांचिंग लेने लगे।

वर्ष 2020 में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 50 किमी दौड़ की प्रतिस्पर्धा में भाग लिया और चौथे स्थान पर रहे। उसके तुरंत बाद कोविड के कारण देश में लॉकडाउन लग गया। राम बाबू के समक्ष फिर से आजीविका की चनौती पैदा हो गई। उस दौरान गांव में मनरेगा के तहत काम बढ़ गया तो वे भी मनरेगा के तहत मजदूरी करने लगे, जिसमें उन्हें रोजना 225 रुपए मिलते थे। राम बाबू कहते हैं, घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए उन्हें मनरेगा की मजदूरी करनी पड़ी। 

एक राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी का इस तरह मनरेगा में काम करने की खबर जब आसपास के लोगों के जरिए मीडिया तक पहुंची तो उद्योगपति आनंद महिन्द्रा ने उन्हें बुलवा लिया और आपनी पसंद का कोई भी ट्रैक्टर या पिकअप चुनने का ऑफर दिया ताकि उससे वे अपनी आजीविका चलाते हुए खेलों पर ध्यान दे सकें। उषेगपति आनंद महिन्द्रा खिलाड़ियों को अक्सर इस तरह के उपहार देकर खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करते रहते हैं। कुछ ही समय पहले उन्होंने शतरंज के प्रतिभाशाली खिलाड़ीआर. प्रगनानंद को इलैक्ट्रोनिक कार भेंट की थी।

राम बाबू उद्योगपति आनंद महिन्द्रा के प्रति तो कृतज्ञ हैं ही मनरेगा को भी कम महत्व नहीं देते। यह स्कीम देेश के करोड़ों लोगों की आजीविका का जरिया है, इसे बेहतर बनाया जाना चाहिए। ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्वारा मनरेगा कार्यों का मूल्यांकन किए जाने पर अक्सर सक्सेस स्टोरी की बात होती है, क्या राम बाबू की सफलता से बड़ी भी कोई सक्सेस स्टोरी हो सकती है।

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