Uttarakhand Land Law : सख्त भ्सू कानून आंदोलन से हो रहा जल, जंगल और जमीन के सवालों का प्रसार


उत्तराखंड के लोग
, एक लंबे अरसे बाद जल, जंगल और जमीन के सवालों लेकर सड़क पर उतरे हैं। ऊपरी तौर पर इसे सक्त भू-कानून और मूल निवास प्रमाण पत्र आंदोलन कहा गया है। इस आंदोलन की शुरुआत यों तो सात साल पहले राज्य रकार द्वारा भू कानूनों में बदलाव के तुरंत बाद हो गई थी। लेकिन एक साल पहले 24 दिसंबर, 2023 को राजधानी देहरादून में हुए विशाल प्रदर्शन के बाद इसका राज्यव्यापी प्रसार हुआ है।

इस अवधि में तराई के मैदानी इलाकों से लेकर राजधानी देहरादून और सुदूर पर्वतीय अंचल के छोटे शहरों एवं कस्बों तक, धरने-प्रदर्शन के रूप में आंदोलनों का उभार आया है। हालाांकि उत्तराखंड के प्रसिद्ध वन बचाओ अथवा चिपको आंदोलन और शराब विरोधी ‘नशा नहीं रोजगार दो’ आंदोलन या अलग राज्य आंदोलन की तरह जन-आंदोलन कहना जल्दबाजी होगी लेकिन उत्तराखंड से शुरू उक्त आंदोलनों के समान ही इस आंदोलन का प्रभाव भी पूरे देश में पड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

मुख्यमंत्री धामी की घोषणा

यही कारण है कि इस आंदोलन को जोर पकड़ता देख राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बृहद भू कानून बनाने का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री ने यह ऐलान भू कानून और मूल निवास से जुड़े मद्दों पर आंदोलनकारियों से चर्चा के बिना एक प्रेस वार्ता में किया है। इससे जनता में यह संदेश गया है कि सरकार की प्राथमिकता समस्या को हल करना नहीं बल्कि आंदोलन को समाप्त करना है।  

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि हमारी सरकार भू-कानून एवं मूल निवास के मुद्दे को लेकर संवदेनशील है। हम अगले बजट सत्र में उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप एक वृहद भू-कानून लाने जा रहे हैं। नये भू कानून में 250 वर्ग मीटर आवासीय और 12.50 एकड़ अन्य भूमि के नियम तोड़ने वालों की भूमि जांच के बाद सरकार में निहित की जाएगी।

वृहद भू कानून में, किसी भी बाहरी व्यक्ति द्वारा अपने नाम से 250 वर्गमीटर जमीन खरीदने के बाद पत्नी के नाम से भी जमीन खरीदना निषिद्ध होगा।  यदि कोई ऐसा करता है तो उसे भी तय सीमा से अधिक माना जाएगा। कहा गया है कि वृहद भू कानून से राज्य के विकास और रोजगार के लिए उद्योगों लगाने के लिए निवेशकों को जमीन की कोई दिक्कत नहीं आएगी। ऐसा इसलिए कि नगा निकाय क्षेत्र को वृहद भू कानून से बाहर रखा जाने का प्रावधान  किया गया है।

भू कानून के उलंघन पर सख्त कार्रवाई

हालांकि राज्य सरकार ने वृहद भू कानून बनाने से पहले ही मौजूदा भू कानून के उलंधन पर कठोर कार्रवाई करना आरंभ  कर दिया है। मख्यमंत्री की उक्त घोषणा के बाद हरिद्वार जिले में 25 लोगों को विरुद्ध कार्रवाई की गई है, और पूरे राज्य में 434 लोगों को नोटिस जारी गये हैं। इनमें अधिकतर लोगों ने अपने परिवार के कई सदस्यों के नाम पर जमीन खरीदी है। ऐसे मामले भी काफी ज्यादा है, जिन्होंने भूमि खरीदने के प्रयोजन को पूरा नहीं किया। उद्योग, स्कूल, अस्पताल आदि स्थापित करने के नाम पर खरीदी गई जमीनों का दूसरे कामों में उपयोग किया गया है।

राज्य सरकार ने यह पहल - मौजूदा भू कानून के महतत कठोर कार्रवाई और वृहद भू कानून बनाने का दावा  दोनों ही, मुख्य रूप से हाल के वर्षो में तराई के शहरी और ग्रामीण इलाकों सहित पहाड़ में जिला मुख्यालयों के आसपास और धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों में बाहरी लोगों के बसने  के विरुद्ध ली है। जाहिर है उनमें से कई लोगों ने वैध-अवैध तरीके से जमीन की खरीद-फरोक्त की है, सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण बढ़ा है। राज्य सरकार की नजर में कुलमिलाकर भू कानून का मसला स्थानीय बनाम बाहरी का हैं। राज्य के स्थायी निवासियों के लिये किसी भी उद्देश्य से जमीन की खरीद-फरोक्त की कोई सीमा नहीं है।

आंदोलनकारियों के तर्क

आंदोलनकारी संगठन और नेता राज्य सरकार के इस प्रस्तावित नए भू कानून से से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि पुष्कर सिंह धामी सरकार उत्तराखंड की भूमि समस्या को स्थानीय और बाहरी का विवाद बनाकर आंदोलन को दबाना चाहती है। वे उत्तराखंड का नया भू कानून पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के समान ही सख्त चाहते हैं, जहां कृषि भूमि को गैर-कृषि कार्यों के लिए बेचा या खरीदा नहीं जा सकता। यही नहीं नये भू कानून में इस बात की भी गारंटी चाहते हैं भौतिक संपदा के दोहन के उपयोग का अधिकार भी स्थानीय जनता को मिले। यह तभी हो सकता है जब राज्य में राज्य को संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल किया जाय।

अर्थात सख्त भू कानून की मांग जल, जंगल और जमीन के उपयोग का अधिकार स्थानीय जनता को दिए जाने और राज्य में 5वीं अनसूची लागू किये जाने से जुड़ी है।  आंदोलनकारियों का तर्क है कि इससे जहां राज्य में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे  और भोतिक एवं मानव संसाधनों का राज्य के हित में उपयोग होगा, वहीं पलायन पर रोक लगेगी और प्राकृतिक आपदाओं को भी नियंत्रित किया जा सकेगा। इस तर्क का तेजी से निचले स्तर पर विस्तार हो रहा है। हाल ही में जोशीमठ में मूल निवासी स्वाभिमान संगठन के बैनर तले आयोजित विशाल प्रदर्शन से भी इस बात की पुष्टि होती है।


एक-दूसरे से जुड़े हैं दोनों मुद्दे

हालांकि सख्त भू कानून और मूल निवासी प्रमाण पत्र दो अलग-अलग मामले हैं लेकिन उत्तराखंड में देानों ही आपस में इस तरह गुंथे हैं कि उन्हें अलग करके नहीं देखा जा सकता है। इससे जुड़े विवाद की शुरूआत, नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य का निर्माण होने के साथ ही हो गई थी जबकि नवगठित राज्य की पहली निर्वाचित एन.डी. वितारी सकार ने सरकार ने 2002 मेंभूमि से जुड़े कानून में कई बदलाव किए गए हैं और उद्योग लगाने का हवाला देकर का हवाला देकर भूमि की खरीद और बिक्री को आसान बनाया गया है।  इससे राज्य में बाहर के लोगों ने बड़े पैमाने पर खरीदी और वे राज्य के संसाधनों पर हावी हुए हैं, जबकि यहां के मूल निवासी और भूमिधर भूमिहीन हुए हैं।

इस समस्या को बढ़ाने में मूल निवासी प्रमाण पत्र के स्थान पर स्थायी निवासी प्रमाण पत्र की व्यवस्था ने अहम् भूमिका निभाई है, जो कि राज्य की नित्यानंद स्वामी की अंतरिम सरकार ने राज्य बनने के तुरंत बाद लागू कर दी थी। उत्तराखंड के लोग चाहते थे कि 1950 को मूल निवास की समय सीमा निर्धारित की  जाय लेकिन गैर उत्तराखंडी मूल के मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने मूल निवास के स्थान पर स्थायी निवासी प्रमाण पत्र की व्यवस्था लागू कर दी जिसकी कट ऑफ 1985 रखी गई। यानी जो लोग राज्य बनने से 15 साल पहले से उत्तराखंड में रह रहे थे उन्हें राज्य का स्थायी निवासी माना गया। इससे जहां 15 साल से अधिक समय से प्रवास में रह रहे उत्तराखंडियों को अपने अधिकारों से वंचित होना पड़ा है वहीं 15 साल से अधिक समय से उत्तराखंड में रह रहे गैर उत्तराखंडियों ने इसका भरपूर लाभ उठाया है। इसका असर पर्वतीय राज्य की संस्कृति, परंपरा, अस्मिता और पहचान पर पड़ा है।

ज्ञात हो कि अलग उत्तराखंड राज्य आंदोलन का ध्येय भौगोलिक दृष्टि से एक अलग राजनैतिक और प्रशासनिक इकाई का गठन करना नहीं था बल्कि एक ऐसे राज्य का निर्माण करना था जहां भौगोलिक संसाधनों के उपयोग का अधिकार स्थानीय लोगों को प्राप्त हो और नीतियों के निर्माण एवं योजनाओं के क्रियान्वयन में लोगों की तर्कसंगत भागीदारी सुनिश्चित हो। लेकिन राज्य बनने के साथ ही शुरू सत्ता की होड़ के चलते यह मुद्दा दब कर रह गया था। सवाल यह है कि सख्त भू कानून और मूल निवासी प्रमाण पत्र का जो आंदोलन उत्तराचांड में पसर रहा है क्या वह राज्य निर्माण के बुनियादी सवालों पर आधारित राजनैतिक विमर्श शरू करने में सफल हो पायेगा?

Source: https://hindi.downtoearth.org.in/development/why-are-the-people-of-uttarakhand-agitating-what-is-the-issue-of-bhu-kanoon-and-mool-niwas-93551


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ