
देश में कोरोना संक्रमण का पहला मामला केरल में सामने आया था। उसके बाद राज्य में कोरोना संक्रमण भी तेजी से बढ़ा था। जल्दी ही राज्य ने उसके प्रसार पर प्रभावी रोक लगाने में कामयाबी हासिल कर ली। निसंदेह इसका श्रेय राज्य की पिनारई विजयन सरकार को जाता है, लेकिन उसे कारगर बनाने में राज्य की सुदृढ़ पंचायती राज व्यवस्था की भूमिका को नजर अंदाज भी नहीं किया जा सकता। इसी बीच राज्य के एर्नाकुलम जिले की वडक्ककेरा ग्राम पंचायत ने एक ऐसा अत्भुद प्रयोग कर डाला है कि जिसे नई कृषि क्रांति का नाम दिया जा रहा है।
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए जब 23 मार्च को 21 दिन के देशभर में लॉकडाउन के घोषणा हुई तो वडक्ककेरा के लोगों ने तय किया वे इस समय का बखूबी इस्तेमाल करेंगे। ग्राम पंचायत में सामूहिक चर्चा के बाद तय हुआ कि गांव की खाली पड़ी जगह, घरों के आसपास और छतों पर सब्जियां उगाने का निर्णय लिया गया। ग्राम पंचायत के सभी वार्ड मेंबरों को अपने-अपने वार्ड में इस विचार का प्रचार-प्रसार करने का जिम्मा दे दिया गया। ग्राम पंचायत का यह संदेश निर्णय जल्दी ही करीब 31,500 आबादी (10,312 परिवार) वाले पंचायत के घर-घर तक पहुंच गया।

ग्राम पंचायत की इस मुहिम से पहले हफ्ते में ही करीब 4,800 परिवार जुड़ गए थे। कुछ ही दिनों में इससे जुड़ने वाले परिवारों की संख्या 9,417 हो गई। ग्राम पंचायत ने इस मुहिम को ‘द वेजिटेबल फार्मिंग चैलेंज’ नाम दिया। ग्राम पंचायत ने सुनियोजित तरीके से गांव के सभी लोगों को सब्जियों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सबसे पहले परिवारों के छोटे-छोटे समूह बनाए और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए अपने-अपने घरों के आसपास खाली पड़ी जगहों को साफ करवाया। इसके बाद इनकी जुताई कर इन्हें सब्जी बोने लायक खेत में तब्दील किया। तत्पश्चात ग्राम पंचायत ने अलग-अलग किस्म के बीजों के 20 हजार से अधिक पैकेट मुफ्त ग्रामीणों में बांटे। पंचायत ने यह भी तय किया गया कि ग्रामीण इसमें पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं करेंगे और आर्गेनिक फार्मिंग अपनाएंगे।
पंचायत की यह पहल रंग लाई। लाॅकडाउन-2.0 शुरू होने तक गांव के अधिकांश परिवारों के घरों, आंगन और आसपास खाली पड़ी जमीन पर ताजी सब्जियों लहलहाने लगी थीं। लोगों के अपने उपयोग से ज्यादा सब्जियां पैदा होने लगी तो उन्होंने सब्जियों को बाजार में बेचने की योजना बनाई। ग्राम पंचायत की इस मुहिमपहल का राज्य सरकार ने भरपूर सहयोग मिला। सामूहिक प्रयासों से मिली सब्जी की उपज इतनी ज्यादा थी कि केरल सरकार के कृषि विभाग ने किसानों के लिए बाजार तैयार करके दिया है, जहां गांव के लोग अपनी सब्जियां बेच सकते हैं।
पंचायत के सहायक कृषि अधिकारी एस सीना कहते हैं कि हमने लाॅकडाउन में लोगों को समय का इस्तेमाल करने और सब्जियों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह फार्मिंग प्रोग्राम शुरू किया था। यह आॅर्गनिक सब्जियां पैदा करने का एक छोटा सा प्रयोग था। तब हमने सोचा नहीं था कि इसका इतना असर होगा कि अन्य पंचायतें इसे अपनाना चाहेंगी। आज, गांव के ज्यादातर लोग ‘द वेजिटेबल फार्मिंग चैलेंज’ से जुड़कर सब्जियां पैदा कर रहे हैं, उनकी आमदनी भी बड़ी है।

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मध्य प्रदेश : नहीं थम रहा पंचायत कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई का सिलसिला
कोरोना महामारी के चलते जहां ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत कर्मियों के कंधों पर पीले की तुलना में काफी भार बढ़ गया है वहीं उनके विरुद्ध प्रशासन की कार्रवाई का सिलसिला भी बढ़ता जा रहा है। कहीं कार्य संतोशजनक न पाए जाने के नाम पर तो कहीं शहरों से गांवों में लौटे प्रवासियों को कोरोंटाइन में अपेक्षित सहूलियतें उपलब्ध कराने या उन्हें मनरेगा के तहत रोजगार देने में लापरवाही बरतने के आरोप में उनके विरुद्ध कार्रवाई हो रही है। ताजा मामला राज्य के हरदा जिले का है, जहां 9 ग्राम पंचायत सचिवों को निलंबित करने के साथ ही ग्रामीण विकास के तीन दर्जन कर्मचारियों को चेतावनी सहित कारण बताओ नोटिस दिया गया है।
हरदा के सीईओ जिला पंचायत दिलीप कुमार यादव ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा संचालित योजनाओं की प्रगति संतोषजनक न पाए जाने पर 9 ग्राम पंचायत सचिवों निलंबित कर दिया? जबकि 30 ग्राम रोजगार सहायकों को 7 दिन के अंदर कार्य में अपेक्षित न होने पर उनकी सेवा समाप्त करने का नोटिस दिया गयी है। इसके साथ ही 3 जनपद (ब्लाॅक) पंचायतों के अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी मनरेगा और तीनों जनपदों के उपयंत्रियों (सब-इंजीनियर) को कारण बताओ नोटिस दिया गया है।
सीईओ जिला पंचायत ने यह कार्रवाई ग्राम पंचायत वार विकास कार्यों की समीक्षा बैठक के बाद की है। बैठक में मनरेगा अंतर्गत ग्राम पंचायतों में वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए लक्षित लेबर बजट के विरुद्ध वर्तमान प्रगति, ग्राम पंचायतों में सक्रिय श्रमिकों के विरुद्ध रोजगार उपलब्ध कराये जा रहे श्रमिक, प्रगतिरत कार्यों पर जारी किए गए मस्टर, नवीन प्रारंभ किए गए कार्यों व श्रमसिद्धि अभियान अंतर्गत प्रवासी श्रमिकों व अन्य ग्रामीणों को प्रदाय नवीन जॉबकार्ड की समीक्षा की गई। साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना अंतर्गत वर्ष 2016-17 से वर्ष 2019-20 तक के आवास निर्माण की प्रगति व स्वच्छ भारत मिशन अंतर्गत नवीन जोड़े गए हितग्राहियों के शौचालय निर्माण की प्रगति की समीक्षा की गई।
पंचायत कर्मियों के विरुद्ध की गई कार्रवाई के संबंध में सीईओ जिला पंचायत यादव ने कहा कि कोविड-19 संक्रमण के कारण पलायन से वापस आये प्रवासी श्रमिकों मनरेगा योजना अंतर्गत अधिक से अधिक रोजगार उपलब्ध कराना प्रथम प्राथमिकता है। ग्राम पंचायतों को कई बार निर्देशित किया गया है कि सभी प्रगतिरत कार्यों पर मस्टर जारी करवाएं व नवीन कार्य प्रारंभ कर श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध करवाएं लेकिन कुछ ग्राम पंचायतों में उपयंत्री, सचिव व रोजगार सहायकों द्वारा श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध करवाने में और प्रधानमंत्री आवास योजना अंतर्गत हितग्राहियों के आवास पूर्ण करवाने में लापरवाही की गई।
ज्ञात हो कि इससे पूर्व दमोह जिले में सीईओ जिला पंचायत डॉ गिरीश मिश्रा ने सलैया हटरी और शिकारपुरा ग्राम पंचायतों में कोरोना संक्रमण पाए जाने पर दोनों पंचायतों सचिवों को निलंबित कर दिया था। यह कार्रवाई कोरोना संबंधी जिला स्तरीय निगरानी दल द्वारा सलैया हटरी एवं शिकारपुरा का निरीक्षण करने उपरांत प्रस्तुत प्रतिवेदन के आधार पर की गई थी। उक्त पंचायतों के सचिवों को पंचायत के कार्यो में रूचि नहीं लेने एवं कंटेनमेंट जोन का सेनेटाईजेशन में रूचि से कार्य नहीं करने, पंचायत भवन बंद पाए जाने, कोरोंटाइन सेंटर में प्रवासियों को भोजन व अन्य सुविधाएं उपलब्ध न कराने जैसे आरोप लगाए गए थे। इसके अतिरिक्त प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह जिले तक पहुंचाने के लिए नियुक्त सिवनी जिले के तीन शिक्षकों और छिंदवाड़ा जिले के एक शिक्षक को विभागीय अधिकारियों द्वारा निलंबित कर दिया गया था। निलंबन अवधि में इन्हें नियमानुसार जीवन निर्वाह भत्ता की पात्रता रहेगी।
कर्मचारियों के निलंबन को जहां वरिष्ठ अधिकारी विधि सम्मत होने की बात कहते हुए आवष्यक बताते हैं वहीं पंचायत कर्मियों सहित ग्रामीण स्तर पर कार्यरत अन्य विभागों के कर्मचारियों में इससे असंतोष और असुरक्षा की भावना बढ़ गई है। ज्ञात हो कि राज्य में ग्राम रोजगार सहायक सहित अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी मनरेगा और उपयंत्री सभी संविदा पर कार्यरत हैं। उन्हें न केवल उनकी योग्यता और कार्य क्षमता से बहुत कम मानदेय दिया जा रहा है बल्कि उनके रोजगार की भी कोई गारंटी नहीं है।
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