
कोरोना वायरस की स्थिति पर नजर रखने के लिए ओडिशा सरकार ने राज्य की सभी ग्राम पंचायतों में ‘‘कोविड केयर होम’’ बनाने और पंचायत के सभी वार्डों में समितियां गठित करने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने यह घोषणा करते हुए कहा कि राज्य की सभी 6798 ग्राम पंचायतों में कोविड केयर होम बनाए जाएंगे, प्रत्येक कोविड केयर होम में 10 से 20 लोग ठहर सकेगें। वार्ड स्तर पर वार्ड सदस्यों, एएनएम, आशा और महिला स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को मिलाकर कोविड प्रबंधन समिति बनायी जाएगी। इस समिति को महामारी रोग अधिनियम के तहत विशेष अधिकार दिये जाएंगे। इस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में इन कोविड केयर होम में 70000 से 13,000 तक लोग आ सकंेगे। योजना के अनुसार ग्रामीणों में सर्दी जुकाम, खांसी और बुखार जैसे कोरोना के लक्षण दिखने उन्हें इन कोविड केयर होम में रखा जाएगा। जांच में जिस किसी में संक्रमण की पुष्टि होगी उसे विशेष कोविड-19 अस्पताल में ले जाया जाएगा। उन्होंने कहा कि जिसकी जांच में कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि नहीं होगी, वह घर लौट जाएगा, वहीं अपना इलाज कराएगा। मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि राज्य में पर्याप्त विशेष कोविड अस्पताल हैं जहां आईसीयू सुविधाओं के साथ करीब 10 हजार बेड हैं। साथ ही उनके अनुसार राज्य में कोविड मरीजों के उपचार हेतु प्रशिक्षित श्रम बल भी है और स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त मेडिकल उपकरण हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, ओडिशा की निदेशक शालिनी पंडित के अनुसार ओडिशा में 31 जुलाई तक दूसरे राज्यों लगभग 5.5 लाख लोगों के आने का अनुमान है। राज्य सरकार ने प्रवासियों में कोरोना वायरस के लक्षणों का और स्थानीय लोगों में उनके संक्रमण का पता लगाने के लिए 16 जून से 31 जुलाई तक 45 दिन का गहन निगरानी कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम के तहत आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता मोहल्ला-बस्तियों में जाकर कोविड-19 लक्षण वाले लोगों के बारे में जानकारी जुटा रहे है।
उल्लेखनीय है कि ओडिशा सरकार ने जुन पहले सप्ताह में राज्य के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गनाए गए करीब 15,000 क्वारंटाइन सेंटरों में कोविड वॉलिंटियर सर्टिफिकेट कोर्स आरंभ किया था, जिनमें कोरोना से बचाव के विभिन्न उपायों सहित योगा, मेडिटेशन आदि जानकारी दी गई थी।
कोविड वॉलिंटियर सर्टिफिकेट कोर्स को मनरेगा से जोड़ा गया है। क्वारंटाइन सेंटर अगर कोई खाना बनाने या साफ-सफाई में मदद करता है उसे 150 रुपये प्रतिदिन और कोविड वॉलिंटियर्स को 207 रुपये प्रतिदिन पारिश्रमिक दिया जाना तय किया गया है। इससे क्वारंटाइन सेंटरों में काम करने वाले लोग अधिक से अधिक जिम्मेदारी से अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकें।
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बिहार: पंचायत स्तर पर बैंक शाखा खोलने की पेशकस
मनरेगा सहित ग्रामीण विकास और समाज कल्याण की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों के बैंक खाता जरूर कर दिए जाने और ग्रामीण क्षेत्रों में बैंको की शाखाएं न होने की समस्या को देखते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम पंचायतों में बैंक शाखा खोलने की जरूरत बताई है। राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की 72वीं समीक्षा बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘देश में 11 हजार की जनसंख्या पर बैंक की शाखा है जबकि बिहार में 16 हजार की जनसंख्या पर एक बैंक शाखा है। राज्य में 8,386 ग्राम पंचायतें हैं। बिहार की प्रत्येक ग्राम पंचायत में बैंक की शाखा खोली जाए, इसके लिए सरकार बैंकों को पूरी सहायता करेगी। नई बैंक शाखा खोलने के लिए पंचायत भवनों के साथ-साथ अन्य सरकारी भवनों में जगह उपलब्ध कराया जाएगा।’’
गौरतलब है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक शाखा न होने के कारण मनरेगा श्रमिकों को अपना पारिश्रमिक लेने सहित विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को मिलने वाली सहायता हासिल करने में बड़ी मुश्किलों का समाना करना पड़ता है। लगभग सभी योजनाओं की धनराशि सीघे लाभार्थियों के खाते में जाती है। उसे निकालने के लिए ग्रामीणों को शहर के चक्क्र काटने पड़ते हैं। इससे उन्हें समय और धन दोनों का नुकसान उठाना पड़ता है। ग्राम पंचायत स्तर पर बैंक शाखा हो जाने पर उन्हें काफी सहूलियतें मिल सकती है।
बैंकर्स समिति की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में खेलने वाली बैंक शाखाओं में डिपोजिट-क्रेडिट के अनुपात का पूरा ध्यान रखा जाएगा। सरकार का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना है, जिससे बिहार के लोगों को अपने राज्य में काम का अवसर मिले। इसमें बैंकों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है। राज्य में सूक्ष्म एवं लघु उद्योग इकाइयां, पशुपालन, मुर्गीपालन, हस्तशिल्प, हस्तकरघा, कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में रोजगार सृजन की काफी संभावनाएं हैं। लोगों की भी बैंकों के प्रति बहुत अच्छी अवधारणा है, वे अपनी सेविंग का अधिक से अधिक पैसा बैंकों में जमा करते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक न होने से लोगों को अपनी बचत का लाभ नहीं मिलता बैंक लोगों की जमा पूंजी को अन्य राज्यों में निवेश कर देते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक की शाखाएं होने से ग्रामीणों को दोहरा लाभ होगा। एक तो वे सरकारी योजनाओं से मिलने वाली धनराशि का सुविधापूर्वक उपभोग कर सकेंगे दूसरे बैंको से ऋण लेकर अपना रोजगार पैदा कर सकेंगे।
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