MGNREGA : मनरेगा सूची से हटाए 84.8 लाख श्रमिकों के नाम, Lib Tech ने किया खुलासा

 

भारत ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी स्कीम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) का संकट निरंतर बड़ता जा रहा है। यह योजना देश के सबसे कमजोर लोगों के सामाजिक कल्याण को सुरक्षित करने के उद्देश्य से आरंभ की गई थी। ग्रामीण भारत के लिए यह कितनी महत्वपूर्ण हैए कोविड संकट के दौरान पूरे देश ने देखा था। इसके बावजूदए मनरेगा श्रमिकों को निरंतर सूची से बाहर किया जा रहा है।

शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के संगठन, लिब टेक (Lib Tech) द्वारा जारी एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष अप्रैल से सितंबर के बीच महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत पंजीकृत 84.8 लाख श्रमिकों के नाम कार्यक्रम से हटा दिए गए, जबकि 45.4 लाख नए श्रमिकों को जोड़ा गया है। अर्थात मनरेगा सूची से 39.3 लाख श्रमिक कम हो गए। यह कार्रवाई उनके आधार-आधारित भुगतान प्रणाली  के लिए अयोग्य होने के कारण की गई है।

हटाए गए श्रमिकों में सबसे अधिक तमिलनाडु के

मनरेगा की पंजीकृत सूची से हटाए गए श्रमिकों में सबसे अधिक संख्या तमिलनाडु के (14.7%) और दूसरे स्थान पर छत्तीसगढ़ (14.6%) के श्रमिक है। सूची से हटाए गए अधिकतर श्रमिकों को एबीपीएस यानी आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (Aadhaar-Based Payment System) के कार्यान्वयन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था, जिससे मनरेगा योजनाओं में भागीदारी उनकी क्षमता से बाहर हो गई थी।

कार्य-दिवसों में भी भारी गिरावट

लिब टेक की रिपोर्ट के अनुसार, आधार-आधारित भुगतान प्रणाली की मुश्किलों के कारण सृजित कार्य-दिवसों (person-days) में भी भारी गिरावट आई है, जो पिछले वर्ष (अप्रैल-सितंबर) 184 करोड़ थे वह इस वर्ष (उसी अवधि में) घटकर 154 करोड़ कार्य-दिवस रह गए हैं। लगभग 16 प्रतिशत की गिरावट। अर्थात मनरेगा योजनाओं में रोजगार के अवसर भी कम हुए हैं।

सृजित कार्य दिवसों की यह गिरावट देश के 14 राज्यों में दर्ज की गई है जबकि 6 राज्यों में वृद्धि देखी गई है । सबसे अधिक गिरावट तमिलनाडु में 59 प्रतिशत और दूसरे स्थान पर ओडिशा में 49.7 प्रतिशत आई है। इसके विपरीत महाराष्ट्र में 66 प्रतिशत और हिमाचल प्रदेश में 53 प्रतिशत कार्य-दिवसों की वृद्धि देखी गई।

इा आकलन में पश्चिम बंगाल शामिल नहीं है। भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण 2021 से ही वहां मनरेगा बजट आबंटन बद है। राज्य सरकार का कहना है कि विपक्ष शासित होने के कारण केंद्र ने राजनैतिक कारणों से मनरेगा बजट रिलीज नहीं कर रही है। बहरहाल,पश्चिम बंगाल में फिर से शुरू नहीं किया गया है, जिससे वहां मनरेगा मजदूर बेरोजगार हो गए हैं।  

सुनियोजित योजना का हिस्सा

लिब टेक ने अपने विश्लेषण में कहा है कि मनरेगा पंजीकरण की सूची से श्रमिकों के नाम हटाना सरकार की सुनियोजित योना का हिस्सा हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 और 2023-24 के दौरान मनरेगा पंजी से 8 करोड़ श्रमिकों के नाम हटा दिए गए। आज भी कुल पंजीकृत श्रमिकों में से 27 प्रतिशत और सक्रिय श्रमिकों में से 4 प्रतिशत से अधिक मजदूर वर्तमान में एबीपीएस के लिए अपात्र हैं। निकट भविष्य में इन्हें भी पंजी से हटाया जाना लगभग तय है।

आरंभ से विवादास्पद रही है एबीपीएस प्रणाली

ज्ञात हो कि मनरेगा स्कीमों में श्रमिकों के पारिश्रमिक भुगतान के लिए एबीपीएस प्रणाली लागू करना आरंभ से ही विवाद का विषय रहा है। दिसंबर 2017 में जब इसकी शुरूआत की गई थी तो मनरेगा श्रमिकों, योजना से संबंधित कर्मचारियों व अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने इस योजना का विरोध किया था।



एबीपीएस के लिए श्रमिकों उनके जॉब कार्ड का उनके आधार कार्ड से जुड़ा होना होना आवश्यक है। आधार और जॉब कार्ड का मेल बैंक खाते से होना चाहिए जो भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India) के साथ मैप होना चाहिए। यह काम पूरी तरह इंटरनेट  से यानी online होता है। इसके बिना धन एक खाते से दूसरे खते में ट्रांसफर नहीं हो सकती।

श्रमिकों के विरोध के कारण

ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के नामों और जन्मतिथियों को लेकर काफी अस्पष्टता रहती है। इस कारण अधिकतर श्रमिक एबीपीएस की पात्रता में नहीं आ पाते। दूसरी बड़ी समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में एबीपीएस के लिए समुचित ब्रॉढबैंड यानी इंटरनेट सुविधा का अभाव होना है। हैरानी की बात तो यह है कि एबीपीएस के तहत मजदूरों की कार्यस्थल पर ऑनलादन हाजिरी को भी जरूरी कर दिया गया।

सरकार ने दावा किया था कि शीघ्र इन दोनों समस्याओं का हल कर दिया जाएगा।  इसके लिए राज्य सरकरों पर दबाव भी बनाया गया। लेकिन जब समस्याएं हल नहीं हई तो एक-एककर पांच बार पूरे देश में एबीपीएस प्रणाली लागू करने की तिथ बढ़ाई गई। अंततः  31 दिसंबर 2022 को 5वीं विस्तारित सीमा समाप्त होने से पहले सरकार ने 1 जनवरी 2023 से सभी मनरेगा स्कीमों में एबीपीएस लागू करने की घोषणा कर दी।

एक झटके में 10.7 करोड़ श्रमिक अयोग्य

श्रमिकों में पहले से ही मनरेगा बजट में कटौती को लेकर असंतोष व्याप्त था।  सरकार ने जैसे ही सभी मनरेगा स्कीमों में एबीपीएस लागू करने की घोष्णा की तो असंतोष आंदोलन में तब्दील हो गया। मनरेगा श्रमिकों ने देश के विभिन्न राज्यों से दिल्ली आकर इस योजना का प्रतिकार किया था। उस समय कल 25.59 करोड़ पंजीकृत और 14.33 करोड़ सक्रिय मनरेगा श्रमिक थे। स्कीम लागू होने से 8.9 करोड़ (34 प्रतिशत) पंजीकृत और 1.8 करोड़ (12.7 प्रतिशत) सक्रिय श्रमिक एबीपीएस के लिए अयोग्य थे।

सच साबित हुई है जयराम रमेश की बात


मनरेगा श्रमिकों के उस आंदोलन का भी वही हश्र हुआ जो देश के तमाम आंदोलनों का बीते
10 सालों में हुआ है। यानी वे दिल्ली में अपना असंतोष जाहिर कर अपने-अपने घरों को लौट गए। लेकिन उस समय जो बात मनरेगा से और ग्रामीण विकास से संबध रखने वाले सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और राजनेताओं ने कही थी वही आज लिब टेक कह  रहा है। 27 दिसंबर, 2022 को कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था कि मनरेगा में तकनीक का सहारा लेकर नरेंद्र मोदी सरकार देश के सबसे कमजोर लोगों को उनके सामाजिक सुरक्षा अधिकारों से वंचित करने का काम कर रही है।  

भाषा का अंतर जरूर है लेकिन लिब टेक की रिपोर्ट तैयार करने वाले तीन सदस्यों - चक्रधर बुद्ध, शमाला किट्टाने और राहुल मुकेरा ने भी इसी ओर संकेत किया है। उन्होंने कहा है कि गलत तरीके से मनरेगा सूची से श्रमिकों का नाम हटाया जाना अत्यंत चिंताजनक है जो खतरनाक प्रवृत्ति को बढ़ाता है।

Source: https://libtech.in/reports-and-trackers

Source: https://www.business-standard.com/economy/news/over-8-4-million-mgnregs-workers-registration-deleted-in-six-months

Source: https://www.thehindu.com/news/national/848-lakh-workers-registered-under-mgnregs-deleted-finds-report/article68797217.ece

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