भारत
सरकार की अध्यक्षता में 3-6 नवंबर, 2024 को गठबंधन का 7वां
अधिवेशन नई दिल्लीं में संपन्न हुआ। इस
अवसर पर ISA Report : World Market 2024 शीर्षक
से एक रिपोर्ट भी जारी की गई। इस
रिपोर्ट में भारत सरकार की सौर र्त्त्जा नीतियों की खामियों को उजागर करते हुए
जीएसटी और भूमि अधिग्रहण नीति को सौर र्त्त्जा विस्तार की मुख्य बाधा बताया गया
है। प्रकारांतर में इस टिप्पणी को वैश्विक उष्णता
को
नियंत्रित करने में भारत के प्रयासों पर प्रश्नचिन्ह के रूप में देखा गया है।
वैश्विक
उष्णता का खतरा
आज यह
किसी गहन अध्ययन का विषय नहीं रह गया है कि दुनिया मेंवैश्विक उष्णता का खतरा
निरंतर बढ़ता जा रहा है। इसका अनमान हाल के वर्षों
में हुए जलवायु परिवर्तन (climate change) से
लगाया जा सकता है। हालिया वैज्ञानिक अध्ययन के
अनुसार के कारण ही हरीकेन (hurricanes) और
ऊष्ण कटिबंधीय तूफानों की भयावहता में वृद्धि हुई है जो आने वाले समय में और भी
बढ़ सकती है। इससे अटलांटिक महासागर और
उत्तरी प्रशांत महासागर के तटवर्ती इलाकों में जनजीवन तहस-नहस हो सकता है।
यदि
भारत और भारतीय उपमहाद्वीप की बात करें तो
शीत
कटिंबधीय क्षेत्रों अथवा देशों की तुलना में इस क्षेत्र को वैश्विक ऊष्णता की और भी अधिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। वैश्विक ऊष्णता के कारण 2035 तक
देश के कई शहरों का तापमान साल में 50 से 80 दिनों तक 50 डिग्री सेल्सियस के अधिक रहने लगेगा। हिमनदों
के पिघलने और वर्षा की अनियमितता से भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं चिंताजनक गति से बढ़
जाएंगी। समद्र तटीय इलाकों में समृद्री बाढ़ और तूफानों
का खतरा बड़ जाएगा। इसका स्वाभाविक असर आर्थिक
क्रियाकलापों पर पड़ेगा, जीडीपी में गिरावट और गरीबी
में में वृद्धि होगी।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण
वैश्विक
ऊष्णता का मुख्य कारण मानव गतिविधियां हैं। औद्योगिकीकरण एवं अनियंत्रित शहरीकरण, वनों
की कटाई,
और
जीवाश्म ईंधन - कोयला, पेट्रोल, और प्राकृतिक गैस आदि इसके मुख्य कारक हैं। खासकर, जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होने वाली कार्बन
डाइऑक्साइड (CO2) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन। इन गैसों
का वातावरण में अत्यधिक जमाव होने से पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ने लगता है। इस
प्रक्रिया के कारण सूर्य की गर्मी पृथ्वी पर बनी रहती है और इसका प्रभाव जलवायु
परिवर्तन में दिखाई देता है।
हालांकि
दुनियाभर के पर्यावरणविद, समाजशास्त्री और वैज्ञानिक वैश्विक ऊष्णता के
सभी कारणों को नियंत्रित करने के प्रयासों को लेकर निरंतर प्रयत्नशील हैं। लेकिन पूंजी आधारित वैश्विक अर्थव्यवस्था के
चलते औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण, जैसी चुनौतियों के आगे वे भी
सहाय नजर आते हैं। राजनैतिक नेतृत्व भी अक्सर
किसी न किसी रूप से इन्हें बढ़ावा ही देता है। वनों की कटाई भी इस
कारण एक हद तक अवश्यंभावी हो जाती
है। इसलिए जीवाश्म ईंधन पर रोक लगाना नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable energy) एकमात्र विकल्प रह जाता है।
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की स्थिति
भारत
अपनी ऊर्जा जरूरतों के मूल रूप से जीवाश्म
ऊर्जा
पर निर्भर रहा है। पर्यावरण असंतुलन और वैश्विक
ऊष्णता के बढ़ते दबाव के कारण सरकार ने वैकल्पिक अथवा नवीकरणीय ऊर्जा के
विकास पर जोर देना आरंभ किया। राष्ट्रीय
स्तर पर इसके लिए एक अलग मंत्रालय भी बनाया गया है,
जिसके
तहत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास और बायोगैस ऊर्जा आदि के विकास योजनाएं बनाकर वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाना दिया जाता है। इसके बावजूद
आज भी भारत में 78 प्रतिशत ऊर्जा जीवाश्म स्रोतों से ही प्राप्त होती है। इसकी मुख्य वजह नवीकरणीय
ऊर्जा के विकास में बाधक सरकार कीनीतिगत खामियां है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन ने भारत में सौर ऊर्जा के विकास में बाधक कारणों को स्पष्ट करते हुए सरकार की उन्हीं नीतिगत खामियों को रेखांकित किया है। हालांकि सौर ऊर्जा के विकास और उसे लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से 2010 में ‘राष्ट्रीय सौर मिशन’ की स्थापना की गई थी। इस मिशन को निचले अर्थात पंचायत स्तर तक ले जाने के लिए वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘प्रधानमंत्री कुसुम योजना’ (PM - Kusum Yojna) आरंभ की है। 2019 में आरंभ ‘पीएम -कुसुम योजना’ 3 घटकों में विभाजित है। पहले घटक में उनकी घरेलू जरूरतों की पूर्ति के लिए सौर ऊर्जा का उत्पादन, दूसरे घटक में कृषि कार्यों के लिए बिजली पैदा करना और तीसरे घटक में अपनी सभी जरूरतें पूरी करने के बाद शेष ऊर्जा को निकटवर्ती ग्रिड को सप्लाई करना यानी बचेना शामिल है।
आईएसए की टिप्पणी
आईएसए ने की प्पिणी से स्पष्ट होता है
इन अपेक्षाओं के परिणाम अपेक्षा के अनुकूल नहीं रहे हैं। आईएसए ने अपनी रिपोर्ट
में कहा कि भारत नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता
का उपयोग नहीं कर पा रहा है। वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services tax- GST) की उच्च
दरें और भूमि अधिग्रहण की मश्किलें सौर पीवी (Solar photovoltaic) यानी सोलर पैनल के उत्पादन की मुख्य बाधाएं है।
सौर ऊर्जा क्षमता के विस्तार में की दूसरी बड़ी बाधा प्रमुख बाधा भूमि अधिग्रहण की कटिनाई है। आईएसए ने नाबार्ड के आंकड़ों के हवाले से कहा है कि भारत में औसत जोत भूमि 1.16 हेक्टेयर से छोटी है। निजी भूमि पर परियोजना स्थापित करने पर उसमें भूमि के हितधारकों को शामिल करने की आवश्यकता होती है, जो परियोजना निष्पादन की गति को धीमा कर देती है।
इसके अतिरिक्त आईएसए ने सौर परियोजना से संबंधित विनियामक मद्दों पर भी सरकार की नीतियों पर तीखी टिप्पणी की है, जिनमें नेट मीटरिंग, रूफटॉप वित्तपोषण, परियोजना के लिए निवेश आदि शामिल हैं। इन नीतिगत खामियों के कारण परियोजना डेवलपर्स और बिजली वितरकों के बीच सामंजस्य नहीं बन पाता। ISA रिपोर्ट वर्ल्ड सोलर मार्केट 2024 में कहा गया है।
हालांकि, आईएसए ने 2024 में सौर ऊर्जा के लिए नीलामी दरों में कमी करने पर भारत सरकार की प्रशंसा की है। इससे सौर सौर पीवी की कीमत कम होगी। सौर ऊर्जा के विस्तार को सहायता मिलेगी। लेकिन इससे सौर ऊर्जा के विकास में बाधक नीतियों का सवाल हल नहीं होता।
समाधान क्या है ?
बहराहल, दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला और 5वीं सबसे बड़ी आर्थि िशक्ति होने के नाते वैश्विक मामलों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। वह चाहे युद्धों के चलते शांति स्थापना की चनौती हो या बढ़ती आर्थिक असमानता के चलते लोगों के आर्थिक-सामाजिक अधिक सुनिश्चित करना हो या फिर वैध्विक उष्णता एवं अन्य प्रर्यावरणीय चुनौतियां। जहां तक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ा देने का प्रश्न है, सरकार को सौर ऊर्जा सहित पवच एवं बायोमासऊर्जा के विकास को भी प्राथमिकता के क्रम में प्रोत्साहित करना चाहिए।
सौर
ऊर्जा के संबंध में निश्चित ही ‘पीएम -कुसुम योजना’ एक सराहनीय प्रयास है। इसे पंचायती राज संस्थाओं
से जोड़ा गया है। लेकिन अभी भी यह योजना उतनी लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाई है, जितनी कि उम्मीद की जा सकती है। इसकी मुख्य वजह प्रशासनिक
एवं प्रशासनिक एवं व्यावहारिक कठिनाईयां हैं।
Source:https://www.frontiersin.org/journals/sustainable-cities/articles/10.3389/frsc.2023.1308684/full
Source: https://www.ucsusa.org/climate/solutions#:~:text=Cut%20emissions,-Report&text
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