महिला सरपंच के बदले सरपंच पति काम करता पाया गया तो होगी कानूनी कार्रवाई



सहयोग करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों को भी नहीं बख्शा जाएगा

उज्जैन (मध्य प्रदेश) की वढ़नगर पंचायत की सरपंच रितु और भरतपुर (राजस्थान) की कामां पंचायत की सरपंच शहनाज की बात कुछ और है। ये दोनों पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी की शानदार मिसाल हैं। दोनों अपने शानदार कैरियर को छोड़ गंाव में रहकर जनता की सेवा के लिए पंचायत चुनाव लड़ी और सरपंच निर्वाचित होने के बाद पूरी तन्मयता से अपना काम कर रही हैं। रितु एमबीए हैं और एक कंपनी में अच्छे वेतन पर काम कर रही थीं, जबकि शहनाज एमबीबीएस हैं, जो किसी भी अस्पताल में अपनी सेवाएं दे सकती थीं या फिर अपना क्लीनिक अथवा हाॅस्पीटल खोल सकती थीं।

इन दोनों महिला सरपंचों को पंचायती राज व्यवस्था में महिला भागीदारी का ‘उल्लेखनीय अपवाद’ कहा जा सकता है। अन्यथा देश के अधिकांश राज्यों में महिला आरक्षण के कोटे से सरपंच/प्रधान/मुखिया बनने वाली महिलाओं में बहुत ही कम स्वयं काम करती हैं। बंगाल सहित दक्षिण भारतीय राज्यों - केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु की बात और है। हिंदी भाषी राज्यों में महिलाएं नाम की सरपंच होती हैं, सारे काम उनके पति या अन्य परिजन करते हैं, वे ही पंचायत से जुड़े सारे फैसले लेते हैं। महिला सरपंचों/प्रधानों की भूमिका केवल हस्ताक्षर करने अथवा अंगूठा लगाने की होती है। इस कारण लगभग सभी हिंदी भाषी राज्यों में ‘सरपंच पति’ या ‘सरपंच प्रतिनिधि’ जैसा एक नया पद पंचायतों में सृजित हुआ है।

पंचायत राज संस्थाओं में महिला आरक्षण की यही वास्तविक तस्वीर है। यों तो संविधान में पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई यानी 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। बिहार, उत्तर पद्रेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि कई राज्यों में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के नाम पर इसे 50 प्रतिशत कर दिया है। जबकि इन्हीं राज्यों में पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी सबसे कम है। इन राज्यों में पंचायतों में 5 से 10 प्रतिशत तक महिला सरपंच ही स्वयं काम करती हैं और निर्णय लेती हें। बाकी सभी सरपंचों/प्रधानों के बदले उनके ‘पति परमेश्वर’ या परिजन या फिर बड़े अधिकारी ही फैसले लेते हैं। अधिकतर मामलों में निर्वाचित महिला सरपंच पंचायत की बैठक में उपस्थित तक नहीं होती।

निर्वाचित महिला सरपंचों/प्रधानों के बदले उनके पति या परिजनों के काम करने पंचायत महिला पंच भी के स्थान पर भी उनके पति या परिजन ही काम करते हैं। इससे पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी भी हतोत्साहित हुई हैं। साथ ही इससे पंचायतों में कुनबापरस्ती बढ़ी है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां आज भी पंचायतों में प्रभुत्वशाली परिवारों का दबदबा है, वहां एक बार आदमी स्वयं तो दूसरी बार अपनी धर्मपत्नी या परिवार की अन्य महिला के नाम पर सरंपच/प्रधान बन जाता है। कुछ समय पहले राजस्थान के बांसवाड़ा जिले की एक पंचायत में 25 सालों से पति और पत्नी के बारी-बारी से सरपंच बनने का मामला काफी चर्चा में रहा था। ऐसी स्थिति में पंचायतकर्मी और प्रशासनिक अधिकारियों को पंचायत के कामकाज में हस्तक्षेप बढ़ जाता है और ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।

अन्य राज्यों में चाहे जो हो, कम से कम राजस्थान में महिला सरपंच के कामकाज में अब सरपंच पतियों या परिजनों का काम करना सरपंच और उस व्यक्ति दोनों पर भारी पड़ेगा। काम में सहयोग करने वाले सरकारी और अधिकारी को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। राजस्थान के ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह ने इस संबंध में एक आदेश जारी किया है। आदेश में कहा गया है कि यदि महिला सरपंच के काम में पति या कोई अन्य व्यक्ति हस्तक्षेप करता हुआ पकड़ा गया तो सरपंच और उस व्यक्ति के विरुद्ध राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा-38 के तहत कानूनी कारवाई की जाएगी। साथ ही महिला सरंपच और उसके पति अथवा प्रतिनिधि को इस काम में सहयोग करने वाले सरकारी कर्मचारी/अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह की ओर से ये निर्देश राज्य के जिला कलक्टरों, जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों और पंचायत समितियों के विकास अधिकारियों के द्वारा जारी किए है।

राजस्थान सरकार के इस फैसले का उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों की महिला प्रघानों/सरपंचों सहित ग्राम पंचायत सचिवों, ग्राम विकास अधिकारियों और पंचायत स्तर के अन्य विभागों के कर्मचारियों ने भी स्वागत किया है। उनका कहना है कि अधिकतर निर्वाचित महिला प्रतिनिधि स्वयं काम करना चाहती हैं, लेकिन पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार काम करने का मौका नहीं मिलता। जबकि जहां कहीं भी महिला सरपंच/प्रधान स्वयं काम करती हैं और निर्णय लेती हैं वहां पंचायतों का प्रदर्शन अपेक्षाकृत अच्छा रहता है। उन्हें गांव की महिलाओं का समर्थन भी मिलता है, इससे सरकारी कर्मचारी अपनी मनमानी नहीं कर पाते। इन राज्यों की महिलाओं को उम्मीद है कि जल्दी वहां की सरकारें भी ऐसा निर्णय लेंगी।


चित्र: 1) वढ़नगर पंचायत, उज्जैन की सरपंच रितु ग्रामीण महिलाओं से बात करती हुई।
2) कामां पंचायत, भरतपुर की सरपंच शहनाज विभागीय कर्मचारियों के साथ।

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