उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों को अभी काफी समय है। राज्य सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव निर्धारित समय पर ही कराए जाएंगे। वर्तमान पंचायतों की पहली बैठक पहली बैठक के मुताबिक मौजूदा ग्राम पंचायतों का कार्यकाल 26 दिसम्बर, 2020 तक है। क्षेत्र पंचायतों का कार्यकाल जनवरी, 2021 में और जिला पंचायतों का कार्यकाल मार्च, 2021 में समाप्त होगा। मौजूदा कोरोना संकट से आने वाले महीनों में स्थितियां बद से बदतर नहीं हुईं तो राज्य में पंचायत चुनाव नवंबर 2020 से लेकर फरवरी 2021 तक कराए जा सकते हैं।
पंचायती राज मंत्री की बात अपनी जगह पर सही है, क्योंकि वे चुनाव की औपचारिक तैयारियों की बात कह रहे थे। लेकिन व्यवहार में राज्य सरकार और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा ने पंचायत चुनावों की तैयारियां एक मजबूत रणनीति के साथ शुरू कर दी है। इसी रणनीति के तहत कहीं पुलिस अधिकारी तो कहीं भाजपा नेता गांवों में जाकर चौपाल लगा रहे हैं। इसी तैयारी के तहत पिछले दिनों बदायूं के एसपी-सिटी जितेंद्र कुमार थाना बिनावर के थाना प्रभारी राजीव कुमार के साथ उक्त थानांतर्गत के ग्राम पंचायतों में पूरे दलबल के साथ पहुंच गए, जहां उन्होंने टकीपुर पालिया, निजामपुर, ददमई, विलहत आदि गांवों में ग्रामीणों की चैपाल लगाई। सूत्रों के मुताबिक बदायूं के एसपी-सिटी ने ये चैपालें राज्य के पुलिस प्रमुख यानी डीजीपी के निर्देशों का पालन करते हुए लगाई है। कहा गया है कि डीजीपी ने गांवों में प्रवासी मजदूरों के लौटने के कारण पंचायत चुनावों में गड़बढ़ियां हो सकती हैं, लिहाजा पुलिस ने चैपाल लगाकर लोगों को आपसी विवाद आपस में मिल-बैठकर हल करने की हिदायत दी। आप खुद ही समझ सकते हैं जब जिले के पुलिस कप्तान चैपाल लगा रहें हों तो गांव के लोग तो चौपाल में आएंगे ही।
राज्य सरकार के समान ही सत्तारूढ भाजपा नेता भी अपने तरीके से गांव-गांव जाकर लोगों की चौपाल लगा रहे हैं। भाजपा नेता अरविंद मिश्र द्वारा वाराणसी के जक्खिनी क्षेत्र में स्थित पनियारा और उसके आसपास के गांवों में ऐसी ही चौपाल लगाने की खबर है। अपने चुनींदा समर्थकों के साथ गांव पहुंचे अरविंद मिश्रा ने लोगों को केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं सहित कोरोना से बचाव और सहायता की जानकारी गांव वालों को दी। साथ ही ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि यदि उन्हें पशु बीमा, फसल बीमा और खाद, बीज व कीटनाशकों से संबंधित किसी भी तरह की परेशानी हो तो वे उनकी मदद करेंगे। सूत्रों के मुताबकि राज्य में लगभग सभी जिलों में भाजपा नेताओं को ग्राम पंचायतों में जाकर चौपाल लगाने की हिदायतें दी गई हैं।
जानकारों का कहना है कि राज्य में सत्तारुढ़ भाजपा इस तरह की चैपालों के जरिए पंचायतों पर अपना वर्चस्व कायम करना चाहती है। आशंका यह भी जाहिर की जा रही है कि चुनाव से ठीक पहले पुलिस अशांति फैलाने के नाम पर पंचायत लड़ने वाले विरोधी दलों के समर्थकों पर कार्रवाई कर सकती है। वहीं भाजपा नेता केंद्र और राज्य सरकारों की लोकलुभावन योजनाओं के नाम पर ग्रामीणों के वोट अपने समर्थकों को दिलाने का काम करेंगे।
अब आप कहेंगे, पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं होते, उसमें किसी पार्टी का घोषित उम्मीदवार नहीं होता। यह सही है, पर यह तो हर कोई जानता है कि प्रधान अथवा क्षेत्र पंचायत या जिला पंचायत का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार किस पार्टी का समर्थन करते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि पंचायत चुनावों के ठीक एक वर्ष बाद राज्य विधानसभा के चुनाव होंगे। यदि पंचायतों में भारी संख्या में भाजपा समर्थित उम्मीदवार जीते तो इसका स्वाभाविक लाभ उसे विधानसभा चुनाव में मिलेगा।
यानी कार्यकर्ता और वोट पक्के!! सवाल तो ये है कि क्या पंचायतों को राज्य सरकार या राजनैतिक पार्टी के हाथों की कठपुतली बन जाने देना चाहिए?
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सीडीओ ने 11 प्रधानों को हटाने की तैयारी का निर्देश दिया चैपाल
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) ने 11 पंचायतों के प्रधानों को हटाने की तैयारी करने का आदेश जारी किया है। कथित तौर पर, ये वो पंचायतें हैं, जहां गांव लौटे प्रवासियों को मनरेगा के तहत रोजगार देने के लिए 8 जून तक कार्रवाई ही शुरू नहीं की गई है। सीडीओ मेधा रूपम ने मनरेगा की समीक्षा बैठक के जिले की 11 ग्राम पंचायतों के प्रधान को उ.प्र. पंचायत राज अधिनियम के नियम 95-जी के तहत पद से हटाने की तैयारी शुरू करने और वहां के वीडीओ को आरोप पत्र जारी करने के आदेश डीसी मनरेगा को दिए हैं। साथ ही इन पंचायतों में कार्यरत 10 तकनीकी सहायकों और 7 रोजगार सेवकों को बर्खास्त करने की कार्रवाई के आदेश दिए।
ये ग्राम पंचायतें गदिया, माती, सरथरा, छदंवल, शुक्लपुर, चकौरा, मौलाबाद, किंहौली, पूरेजबर, सिरौली गौसपुर, और शाहपुर सिदवाही बताई गई है। इस मामले में माती के प्रधान हरिवंश ने कहा है कि उनके यहां जो प्रवासी शहरों से लौटे हैं उनमें अधिकतर मनरेगा में कोई भी काम करने के लिए इच्छुक नहीं हैं, कई ऐसे है जिनके नाम पहले से ही जाॅबकार्डों में हैं। वे मनरेगा में योजनाओं में काम कर रहे हैं। जबकि गदिया की प्रधान आशादेवी के पति जितेंद्र कुमार और छंदवाल के प्रधान राम सहारे कहते हैं कि उन्होंने गांव लौटे प्रवासियों में जो कोंरोंटाइन पूरा कर चुके हैं उनमें से इच्छुक लोगों की मांग पर डिमांड पहले 5 जून को ब्लाॅक में दे दी थी लेकिन ब्लाॅक से 8 जून तक वे अपडेट नहीं हो पाए है।
प्रश्न यह है कि क्या एक निर्वाचित जन प्रतिनिधि होने के नाते प्रधान को इस रतह पद से हटाया जा सकता है? और ग्रामीण विकास, खासकर मनरेगा में अहम भूमिका निभाने वाले तकनीकी सहायक और रोजगार सेवक को इस तरह सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है? क्या सिर्फ इसलिए कि वे संविदा में कार्यरत रहते हैं? उनके रोजगार की गारंटी कौन लेगा?
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राजनीति का अखाड़ा बनी सीसी रोड,
भाजपा समर्थित सरपंच बनते स्वीकृत सड़कें दूसरी पंचायत को हस्तांतरित
छत्तीसगढ़ के कांकेर उत्तर बस्तर जिला की बरहेली ग्राम पंचायत में सड़क निर्माण राजनीति का अखाड़ा बन गया है। नवंबर 2019 में मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना के तहत बरहेली ग्राम पंचायत में 7 सीसी सड़कों की स्वीकृत किया गया था। उस समय कांग्रेस समर्थित बाबूलाल कोला सरपंच थे। चुनाव के बाद भाजपा समर्थित ठाकुरराम दर्रों सरपंच चुने गए तो स्वीकृत सभी सड़कों को संशोधित कर दूसरे पंचायत को स्थानांतरित कर दिया गया। कहा जा रहा है कि सड़कों का स्थानांतरण विधायक मनोज मंडावी (कांग्रेस पार्टी) की अनुशंसा पर पर किया गया है। जबकि सीसी सड़कें बनाने का काम शुरू भी कर दिया था। सड़क दूसरी पंचायतों को स्थानांतरित किए जाने से बरहेली के ग्रामीणों में में जबरदस्त आक्रोश है।
इस मामले में विधायक मनोज मंडावी ने कहा है कि सड़के पुराने सरपंच के कार्यकाल की स्वीकृति थी। इसे संशोधित का दूसरे ग्राम पंचायत को दिया गया है। ग्राम पंचायत बरहेली में ग्रामीणों द्वारा मांग की जाती है तो मांग पूरी की जाएगी। दूसरी ओर मामले में अपनी गर्दन फंसते देख जनपद पंचायत सीईओ (बीडीओ) केएल फाफा ने शासन स्तर से मार्गदर्शन लेकर निर्णय लेने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि सीसी सड़कें छत्तीसगढ़ समग्र विकास योजना के तहत विधायक के द्वारा स्वीकृति था और उन्हीं की उनकी अनुशंसा पर संशोधित कर स्थानांतरति की गई हैं। न किया गया है। सीसी सड़क का आधे कार्य हो चुके हैं। इसके लिए शासन स्तर से मार्गदर्शन लेकर आगे निर्णय लिया जाएगा।
अब इसे क्या कहेंगे? विधायक की दादागिरी या फिर पंचायती राज का ढकोसला। वैसे हाल ही में छत्तीसगढ़ की तीन ग्राम पंचायतों को नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव गाम सभा के पुरस्कार से नवाजा गया था।


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