किसान आंदोलन: सिखों को अपने पक्ष में खड़ा करने का सरकारी प्रयास

 


तीन कृषि कानूनों के विरोध और न्यूनतम समर्थ मूल्य को कानूनी दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर चल रहे किसान आंदोलन में सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच गतिरोध बढ़ता ही जा रहा है। किसानों ने जहां आज 14 दिसंबर को देशभर में धरना-प्रदर्शन करने का ऐलान के साथ ही इसे और तेज करने का दावा किया है तो वहीं सरकार आदंालन को समाप्त करवाने के लिए एक के बाद दूसरी रणनीति अपना रही है, जिसमें सिखों को अपने पक्ष में खड़ा करने का प्रयास भी एक है।

सरकार द्वारा जारी पुस्तिका ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के सिख समुदाय के साथ विशेष संबंध’ को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है। चूंकि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सर्वाधिक आक्रोश पंजाब के सिख किसानों में है, कहा जा सकता  है कि वे ही आंदोलन के हिरावल दस्ते के रूप उसका मार्गदर्शन भी कर रहे हैं। यदि पंजाब के सिख किसान आंदोलन से पीछे हट जाएं तो किसान आंदोलन समाप्त हो सकता है या बिखर सकता है। ऐसा हो भी सकता है, कम से कम सरकार तो यही मानकर चल रही है। किसान आंदोलन के बीच उक्त पुस्तिका के प्रकाशन से भी इसकी पुष्टि होती है।

हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी भाषाओं में प्रकाशित 47 पृष्ठों की इस पुस्तिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में सरकार द्वारा सिख समुदाय के लिए किए गए कार्यों का उल्लेख है, जिनमें हरमंदर साहित जलियांवाला स्मारक को एफसीआरए की अनुमति देना, लंगर पर को टैक्स न लगाना, 1984 के दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए किए गए कार्यों, करतारपुर साहिब का निर्माण आदि कई कार्य शामिल हैं।

पुस्तिका का विमोचन 1 दिसंबर को गुरु नानक की जयंती पर केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने किया था और रेलवे के सार्वजनिक उपक्रम इंडियन रेलवे क्ेटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोंरेशन (आईआरसीटीसी) द्वारा इसे 8 से 12 दिसंबर के बीच करीब 1 करोड़, 90 लाख लोगों को ई-मेल से भेजा गया। हालांकि आईआरसीटीसी ने इस बात का खंडन किया है कि यह पुस्तिका केवल सिख समुदाय के लोगों को भेजी गई है। आईआरसीटीसी सरकारी योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए जन संपर्क कार्यक्रम के तहत समय-समय पर इस तरह की सूचनाएं अपने ग्राहकों को भेजता रहता है।

दूसरी ओर किसान आंदोलन से जुड़े लोगों और समाचार माध्यमों ने इसे गंभीरता से लिया है। उनका कहना है कि सरकार ने किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए एक सुनियोजित तरीके से यह पुस्तिका जारी की है और उस आईआरसीटीसी इस्तेमाल किया है जिसे वह निजी हाथों में सौंपने की योजना बना चुकी है। आंदोलनकारी किसानों को लगता है कि सरकार किसान आंदोलन को कमजोर कर उसे तोड़ने के लिए यह सब कर रही है। लेकिन उसका आंदोलन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है।

 

स्वदेशी जागरण मंच ने माना जरूरी है एमएसपी गारंटी



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण ने भी किसान आंदोलन को लेकर अपने सुर बदलने लगे हैं। मंच ने सरकार से मांग की है कि सरकार कृषि उपजों की न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीद को गैर-कानूनी घोषित करे। स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक अश्विनि महाजन ने कहा कि नए कृषि कानूनों के कारण किसानों को लगता है कि कृषि क्षेत्र में खुले बाजार के आने से व्यापारी किसानों से मनमाने दामों पर कृषि उपज खरीदेंगे। इस आशंका को दूर करने के लिए सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कृषि उपज विपणन समिति की मंडियों से बाहर की मंडियों में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा।

ज्ञात हो कि तीन कृषि कानूनी की वापसी के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा दिया जाना आंदोलनकारी किसानों की मुख्य मांग है, ताकि किसानों को सरकारी यानी एपीएमसी की मंडियों और प्राइवेट मंडियों में एमएसपी मिल सके। स्वदेशी जागरण मंच ने एमएसपी को कानूनी दर्जा देने के बजाय कृषि उपजों को न्यूतम समर्थन मूल्य से कम पर बेचने को गैर-कानूनी बनाए जाने की बात कही है। 

 

देशी जागरण मंच आरएसएस से जुड़ा दूसरा संगठन है जिसने किसान आंदोलन को लेकर अपनी राय बदली है। इससे पहले भारतीय जनसंघ ने आरोप लगाया था कि कृषि कानून बनाने से पहल सरकार ने किसानों को विश्वास में नहीं लिया। उसने 8 दिसंबर के भारत बंद में शामिल होने का भी निर्णय ले लिया था, लेकिन भाजपा के दबाव में आकर आखिर में अपना निर्णय बदल दिया था। कहा जा रहा है कि भाजपा द्वारा देशभ्र में जिला स्तर पर कृषि चौपाल लगाने का निर्णय भारतीय किसान संघ की मांग और आरएसएस की सलाह पर लिया गया है।

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