कंक्रीट के जंगल में तब्दील हुई हरित क्रांति की परयोगशाला

हरित क्रांति की प्रयोगशाला पिश्चमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा का बड़ा भूभाग कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुका है। राज्यों की सरकारों द्वारा कृषि भूमि का अधिगरहण और कृषि भूमि का भूउपयोग बदलकर उसके व्यावसायिक इस्तेमाल की अनुमति देने से कृषि भूमि पांच साल पहले की तुलना में आधी से भी कम रह गई है। गाजियाबाद जिले के डासना क्षेत्र में 57 साल पहले करीब 45,000 बीघा जमीन पर कृषि हो रही थी, जिस पर धान, गेहूं और गन्ना उगाया जा रहा था। वह आज 20,000 बीघा से भी कम रह गई है। जोत कम हो जाने से खाद्यान्न पैदा करने वाले किसान धनिया और पुदीना बो कर अपनी आजीविका चला रहे हैं। गाजियाबाद तहसील की 70 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि का सरकार ने अधिगरहण कर लिया है, जिस पर आवासीय और व्यावसायिक बहुमंजिली ईमारतें खड़ी हो गई हैं। सरकार तमाम बुनियादी सुविधाओं के नाम पर कृषि भूमि का अधिगरहणकर उसे बिल्डरों और उद्योगपतियों को सौंप रही है। ‘ईस्टर्न एक्सप्रेस वे’ के नाम पर डासना क्षेत्र में सैकड़ों एकड़ जमीन का अधिगरहण किया गया है, जिसके बड़े हिस्से को एक्सप्रेस वे का निमार्ण करने वाली कंपनियों को दिए जाने की योजना बताई जा रही है। कृषि भूमि का अंधाधुंध अधिगरहण किए जाने से किसान उसे बचाने के लिए सड़क पर उतर आए हैं। अकेले गाजियाबाद जिले में चार स्थानों जिला मुख्यालय, हापुड़ बाईपास, महरौली गांव और वसुंधरा कालोनी में किसान धरने पर बैठे हुए हैं। गाजियाबाद से सटे गौतम बुद्ध नगर में भी किसान जमीन का अधिगरहण किए जाने के बाद बेहतर मुआवजे की मांग को लेकर पिछले एक साल से आंदोलन कर रहे हैं। इसके अलावा गाजियाबाद जिले के ही दाद्री क्षेत्र में भी सरकार द्वारा मनमाने ंग से किसानों की जमीन का अधिगरहणकर अनिल अंबानी के दाद्री पावर प्लांट को दिए जाने से पिछले दोाई सालों से किसानों का आंदोलन चल रहा है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से सटे दूसरे राज्य हरियाणा की स्थिति तो और भी चिंताजनक है। राज्य के फरीदाबाद, गुड़गांव और सोनीपत जिलों की आधी से अधिक कृषि भूमि का अधिगरहण कर सरकार उसमें या तो स्वयं आवासीय परिसरों का निमार्ण कर चुकी है या फिर उसे बिल्डरों के हवाले कर चुकी है। राज्य में सरकार विशेषआर्थिक क्षेत्र और आवासीय और व्यवसायिक परिसरों के निमार्ण के नाम पर लाखत्रों एकड़ जमीन का अधिगरहण कर बिल्डरों और उद्योगपतियों को सौंप चुकी है। इस कारण राज्य भर में जगहजगह किसान आंदोलन उभर आए हैं। हालांकि कृषि भूमि का अधिगरहणकर उसे उद्योगपतियों को सौंपे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने भी केन्दर और राज्यसरकारों को फटकार लगाई है। लेकिन हालफिलहाल कृषि भूमि की यह लूट खत्म होने वाली नहीं है। क्योंकि सरकार न तो कृषि भूमि के छिन जाने से किसानों के सामने आने वाले संकट की चिंता है और न ही इससे देश की खाद्यान्न आपूर्ति पर पड़ने वाले प्रभाव की चिंता है।

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