नई दिल्ली। एक ओर जहां विभिन्न विकास योजनाओं और शहरी विस्तार के कारण जमीन के अधिग्रहण से बेघर होने वाले लोगों के अध्किारों के लिए देशभर में किसान, आदिवासी और जजंगल व जमीन पर निर्भर जन समुदाय अपने अध्किारों को लेकर आंदोलित है वहीं दूसरी ओर केन्द्र और राज्य सरकारें न्यायालय के दिशा-निर्देशों का उलंघनकर कृषि भूमि को अध्ग्रिहणकर उसे उद्यमियों और व्यवसाइयों के हवाले करने पर आमादा हैं। मुख्यतया शहरी विस्तार और विशेष औद्योगिक क्षेत्रा के नाम पर जारी कृषि भूमि की इस लूट को रोकने सुप्रीम कोर्ट हालांकि तात्कालिक तौर एसईजेड परियोजनाओं पर रोक लगा दी गई है लेकिन कृषि भूमि लूट पूर्ववत जारी है।इस तथ्य का खुलासा हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक जनहित याचिका में सुनवाई के दौरान केन्द्र और राज्य सरकारों को जारी नोटिस से हुआ है। हरियाणा के किसानों की ओर से जारी इस याचिका में राज्य सरकार द्वारा जनहित के नाम पर कृषि भूमि का अध्ग्रिहणकर उसे उद्योगपतियों बिल्डरों और व्यवसाइयों को दिए जाने के कानून को चुनौती दी गई है। भारतीय किसानों यूनियन, हरियाणा की ओर से अध्विक्ता रनवीर यादव द्वारा दायर इस याचिका में भूमि अधिग्रहण अध्निियम 1894 की धरा तीन ;एद्ध को असंवैधनिक बताते हुए इसे तुरंत रद्द किए जाने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि आजादी से पहले अंग्रेजों द्वारा बनाया गया भूमि अध्ग्रिहण कानून भू मापिफया के हाथों का औजार बन गया है। याचिका पर सुनवाई के दौरान किसानों के अध्विक्ता डी.के. गर्ग सरकार कृषि भूमि का अध्ग्रिहणकर उद्योगपतियों और बिल्उरों को गैर-कृषि उपयोग के लिए सौंप रही है। हर साल भूमि अध्ग्रिहण कानून की आड़ में किसानोें से लाखों हेक्टेयर जमीन जनहित के नाम पर छीन ली जाती है। याचिकाकर्ताओं की तमाम दलीलें सुनने के बाद मुख्य न्यायाध्ीश के.जी. बालाकृष्णन और न्यायमूर्ति एस.बी. सिन्हा की पीठ ने केन्द्र और सभी राज्यों की सराकारों को इसका जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट कृषि भूमि के अध्ग्रिहण के संबंध् में पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर चुका है लेकिन उनका पालन नहीं हो रहा है। सरकारें किसानों की जमीन का अध्ग्रिहण करने में किसानों औश्र कृषि पर निर्भर लोगों के मौलिक और संवैधनिक अध्किारों का हनन कर रही हैं। इसके साथ ही एसईजेड परियोजनाओं के लिएभूमि अध्ग्रिहण पर रोक लगाने के बावजूद उनके लिए भी जमीन का अध्ग्रिहण किया जा रहा है।उल्लेखनीय है कि देश में औद्योगिक विकास के नाम पर तैयार विशेष आर्थिक क्षेत्रा नीति के तहत करीब 600 एसईजेड परियोजनाएं बनाने का निश्चय किया गया था जिनमें से सितंबर 2006 तक 267 परियोजनाओं को वाणिज्य मंत्रालय की स्वीकृति मिल चुकी थी। लेकिन भारी जन-विरोध् के कारण आगे उन पर रोक लगा दी गई। लेकिन एसईजेड परियोजनाओं के लिए उसके बाद भी भूमि का अध्ग्रिहण होता रहा है।याचिका में भूमि अध्ग्रिहण का राज्यवार ब्यौरा देते हुए स्पष्ट किया गया है कि हरियाणा में 23 एसईजेड परियोजनाओं को स्वीकृति मिल चुकी है जिसमें एक लाख एकड़ कृषि भूमि जाएगी। इससे पहले राज्य सरकार द्वारा करीब डेड़ लाख एकड़ आवासीय, औद्योगिक और व्यासायिक उद्देश्यों से अध्ग्रिहीत कर पूंजीपतियों के हवाले कर चुकी है।हरियाणा के समान ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गुजरात मध्य प्रदेश, प. बंगाल, महाराष्ट्र आदि सभी राज्यों में कृषि भूमि का अध्ग्रिहण कर उसे उद्योगपतियों को सौंपी गई है या पिफर उसका भू-उपयोग बदलकर पूंजीपतियों को उसे खरीदने की छूट दी गई है।उत्तर प्रदेश मंें पिछले 10 वर्षों के दौरान पांच लाख एकड़ कृषि भूमि का अध्ग्रिहण किया गया तो उत्तराखंड में कुल कृषि योग्य जमीन के एक-तिहाई हिस्से के भू-उपयोग को बदलकर उसे गैर कृषि भूमि घोषित किया गया, जिस पर बिल्डरों, उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को आवासीय, औद्योगिक और व्यासायिक परिसर बनाने की स्वीकृति प्रदान की गई है। इसी तरह पंजाब में तीन लाख एकड़ जमीन का अध्ग्रिहणकर उसे पूंजीपतियों को सौंपी गई है।याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायपीठ ने केन्द्र और राज्य सरकारों को नोटिसस जारी करते हुए उनसे पूछा है कि कृषि भूमि गैर-कृषि उपयोग के लिए कैसे दी गई?
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