CSDS-Lokniti : प्रवासी मजदूरों की समस्या केवल वर्तमान नहीं उनका अतीत और देश का भविष्य भी है



गांवों के गरीबों का लगता है कि जो लोग गांव छोड़कर शहर जाते हैं और फिर शहरों में बस जाते हैं वे शहरों में मजे में रहते हैं। इस कारण साल-दर-साल गांव छोड़कर शहरों में बसने वाले लोगों की संख्या बढ़ती गई है, क्योंकि वे यह नहीं जानते हैं कि गांव छोड़कर शहरों में बसने वाले लोग किस स्थिति में रहते हैं ? 

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज - लोकनीति (Centre for the Study of Developing Societies- Lokniti) की सर्वे रिपोर्ट इस तथ्य का खुलासा करती है। देश की राजधानी दिल्ली की झुग्गी बस्तियों और अनाधिकृत कॉलोनियों में रह रहे प्रवासी मजदूरों की स्थिति पर आधारित इस सर्वे रिापेर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए है। इस बस्तियों में रहने वाले प्रत्येक 10 में से आठ लोग उत्तर प्रदेश, बिहार या फिर प.बंगाल से हैं। वहीं उत्तर और बिहार के 70 प्रतिशत लोग हैं। इससे भी ज्यादा हैरानी वाली बात यह है कि इनमें 78 प्रतिशत लोगों की परिवारिक आय हर माह 20 हजार रुपये से भी कम हैं।


रिपोर्ट में कहा गया है कि  दिल्ली की झुग्गी बस्तियों और अनाधिकृत कॉलोनियों रहने वाले करीब 45.5 प्रवासी मजदूर 10 साल से ज्यादा समय से शहर में रह रहे हैं। करीब 28.7 प्रतिशत लोगों का जन्म यहीं हुआ है और 48.2 प्रतिशत श्रमिक 35 साल से कम आयु के हैं। प्रवासी मजदूरों में पुरुषों की संख्या अधिक हैं और 81.9 पुरुष विवाहित हैं। अधिकतर लोगों के घरों में 2 कमरे भी नहीं हैं। इन श्रमिकों में 60 प्रतिशत मिडिल स्कूल तक शिक्षित है, केवल 8.5 या तो कॉलेज स्नातक कक्षाओं के ड्रॉपआउट हैं या उच्च शिक्षा प्राप्त है। 


हालांकि केंद्र और दिल्ली सरकार ने कमजोर वर्ग के लोगों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई हैं लेकिन बहुत कम प्रवसी मजदूर उन योजनाओं का लाभ उठा पा रहे हैं। 83.7 प्रतिशत श्रमिक एलपीजी गैस का उपयोग करते हैं, जबकि 84.2 प्रतिशत का बैंक या डाकघर में खाता हैजिनमें से 40 प्रतिशत लोगों को पास एटीएम और क्रेडिट कार्ड हैं। 96 प्रतिशत से ज्यादा लोगों के आधार कार्ड बने हैं। इसके बावजूद 3 में से 1 व्यक्ति ही सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा पा रहा है। श्रमिकों में 60 प्रतिशत श्रमिक बिजली सब्सिडी एवं 27 प्रतिशत मुफ्त पानी योजना का लाभ उठा रहे हैं और 40 प्रतिशत को मुफ्त राशन मिल पा रहा है।

सीएसडीएस-लोकनीति की यह रिपोर्ट न केवल प्रवासी मजदूरों की वर्तमान स्थिति का बल्कि उनके ग्रामीण परिवेश की मुश्किलों और शहर के भविष्य के संकट को भी स्पष्ट करती है। सर्वे में जिन प्रवासी मजदूरों की स्थिति का खुलासा किसा गया है उनकी शिक्षा, आमदनी और शहर में रहने की व्यवस्था से स्पष्ट होता है कि इस स्थिति में वे इस कारण रह रहे हैं, क्योंकि गांवों में आजीविका के संसाधनों का नितांत अभाव है। 

दूसरी ओर प्रवासी मजदूरों के कारण शहरी व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालांकि वे शहरी के विकास में अहम् भूमिका निभाते हैं लेकिन शहरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण मूलभूत नागरिक सुविधाओं की आपूर्मि भी बाधित होती है। साथ ही समय के साथ-साथ शहरों में झुग्गी बस्तियों और अनधिकृत कॉलोलियों की संख्या बढ़ती जाती है, जिसका जमीन के कारोबारी और राजनेता लाभ उठाते हैं।

अमानवीय स्थितियों में रहने वाले प्रवासी मजदूर वे चाहे दिल्ली के हों या किसी अन्य महानगर के, उननकी समस्या का हल महानगरों में नहीं उनके ग्रामीण परिवेश में खोजा जाना चाहिए। इसके लिए कृषि व पशुपालन एवं स्थानीय हस्तशिल्प आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था का उद्धार और विकास किया जाना अति आवश्यक है। मनरेगा सहित विभिन्न ग्रामीण विकास की योजनाओं की इसमें निर्णायक भूमिका हो सकती है। निश्चित ही उनमें कई खामियां हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए। यह तभी हो सकता है जब विकास नीतियों के केंद्र में गांव और ग्रामीण अर्थव्यवस्था हो। 

इन्द्र चन्द रजवार

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ