Climate Change : बेमौसम बारिस के कारण बदला पहाड़ों का मिजाज


सोमवार, 16 अक्टूबर को पिथारौरागढ़ सहित समूची सोरघाटी में घने-काले बादलों के कारण दिन में ही अंधेरा छा गया। उसके साथ ही तेज अंधड़ और उसके बाद ओलावृष्टि और बारिस होने लगी। इससे तापमान इतना गिर गया कि लोगों ने पहनने और ओढ़ने के गर्म कपड़े निकाल लिए और ठंड से बचने के लिए लोगों ने अंगीठी और हीटर का इस्तेमाल करने लगे, कहीं-कहीं तो सामूहिक रूप में अलाव भी जलाई गई।


उत्तराखंड के अन्य पर्वतीय जिलों, मुख्यतः रुद्रपयाग, चमोली और बागेश्वर की भी यही स्थिति थी। राजधानी देहरादून में तो  घने बादलों के कारण अंधेरा छा जाने से वाहनों को दिन में ही हेडलाइट जलानी पड़ी। राज्य के ऊंचे पहाड़ी इलाकों में जहां दिसंबर आखिर में या जनवरी की शुरुआत में भी पर्यटक हिमपात का इंतजार करते हैं वहां वर्फ की सफेद चादर तन गई। गंगोत्री से लेकर केदारनाथ, बद्रीनाथ सहित कई तीर्थस्थलों में वर्फबारी हुई। 


पिथौरागढ़ में मुनस्यारी, ऊपरी जोहार, पंचचूली, खलिया टॉप, छिपला केदार आदि कई स्थानों पर हिमपात हुआ। हाल ही में प्रधानमंत्री की यात्रा के कारण चर्चा में आए आदि कैलास, पार्वती कुंड सहित दामा और व्यास घाटियों के कई इलाके वर्फ से ढक गए। तेज अंधड़ और हवाओं के कारण हरिद्वार में गंगा किनारे का कूड़ा शहर की गलियों में पसर गया। राज्य का औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस के गिरकर 14 डिग्री पर आ गया। 


मौसम में आए इस बदलाव का कारण जलवायु परिवर्तन माना गया है। उत्तराखंड के समान ही देश के कई स्थानों में मौसम का अनियमित मिजाज रहा है। मौसम की अनिश्चिता का यह सिलसिला पिछले 13 सालों से चला आ रहा है। इस कारण ही देश के कइ हिस्सों को सूखे का सामना करना पड़ा है तो कुछ हिस्सों को अतिवृष्टि और भूस्खलन व बाड़ की त्रासदी क्षेलनी पड़ी है। इस वर्ष अगस्त-सितंबर मे हिमाचल प्रदेश की आपदा, उसके बाद सिक्किम में अतिवृष्टि व बाढ़ की विभीषिका और इसके विपरीत महराष्ट्र और कर्नाटक के बड़े हिस्से में सूखा इसके ताजा उदाहरण हैं। 

सूखा हो या अतिवृष्टि दोनों के मूल में जलवायु पविर्तन मुख्य कारण है। इन आपदाओं के कारण हर साल जान-माल का भारी नुकसान होता है और अवसंरचना नष्ट हो जाती है। जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव कृषि पर पड़ रहा है। बेमौसम वर्षा या सूखे के कारण अक्सर फसलें नष्ट हो जाती हैं, जिसका खामियाजा कृषि पर निर्भर किसानों, कृषि उत्पदों के व्यपारियों और एउद्यमियों सहित सामान्य उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता है।

बहरहाल, जलवायु पविर्तन को भूमंडलीय उष्णता यानी Global warming के तौर पर समझा जा सकता है। मौसम चक्र में बदलाव और साल दर साल भौतिक आपदाओं की पुनरावृति इसी का नतीजा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही हिमनद यानी Glaciers  तेजी से पिघल रहे हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से महासागरों का जल स्तर निरंतर बढ़ता जा रहा है। इससे आने वाले समय में समुद्र किनारे के कई शहरों के जलमग्न होने की बातें भी अक्सर चर्चा में होती रहती हैं।  

जलवायु परिवर्तन की समस्या को लेकर आज दुनियाभर के मौसम विज्ञानी, पर्यावरणविद और नीति नियंता चिंतित है। इस से पैदा संकट को कम करने के दावे भी वैश्विक स्तर पर होते रहते हैं, लेकिन ये दावे कागजों में ही सिमटकर रह जाते हैं। इसकी बड़ी वजह दुनिया के विकसित देशों में ऑद्योगिक उत्पादन बढ़ाने की होड़, जिसमें ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का तेजी से विस्तार प्रमुख है।

इन्द्र चन्द रजवार

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