कांगरेस का हाथ कार्पोरेट के साथ : संदर्भ दिल्ली की परिवहन व्यवस्था

लोकसभा चुनाव में कांगरेस का हाथगरीब के साथ’ नारा देना कांगरेस के लिए 1971 में इन्दिरा गांधी द्वारा दिए गए गरीबी हटाओ’ नारे के समान ही फायदेमंद साबित हुआ है। यह 1971 की कांगरेस और 2009 की कांगरेस की सबसे बड़ी समानता है। जिस तरह 1971 में इन्दिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा देकर लोकसभा की दोतिहाई सीटें जीतकर विपक्ष को चित्त कर दिया था ठीक उसी तरह 2009 में सोनिया-मनमोहन के नेतृत्व में कांगरेस ने कांगरेस का हाथ गरीब के साथ नारा देकर कांगरेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को पूर्ण बहुमत दिलाकर विपक्षी दलों और मोचार्त्रें के हौंसले पस्त कर दिए थे। दूसरी और इससे भी बड़ी समानता यह है कि इंद्रि गांधी ने गरीबों के वोट हासिल करने के बाद गरीब विरोधी नीतियां बनानी शुरू कर दी थीं, जिसकी परिणति इंद्रि गांधी के विरुद्ध देश व्यापी असंतोष, समगर क्रांति आन्दोलन और अंततः इंद्रि गांधी की निरंकुश तानाशाहीआपातकाल, के रूप में हुई। इस बार भी कांगरेस ने गरीबों के वोट हासिल करने के बाद कार्पोरेट और पूंजीपतियों के हित पोषण में काम करना शुरू कर दिया है। यह कहना कठिन है कि इन्दिरा गांधी गरीबी हटाओ नारा देने से पहले ही गरीब विरोधी नीतियां बनाने की तैयारी कर चुकी थी या नहीं लेकिन इस बार कांगरेस का इरादा पहले से ही साफ दिख रहा था। पिछले कार्यकाल के दौरान ही विशेष आर्थिक क्षेत्र, शहरों का आधुनिकीकरण, भारीभरकम जल विद्युत परियोजनाओं, समुदरतट प्रबंधन क्षेत्र आदि के नाम पर सरकार ने किसानों, मजदूरों, शहरी गरीबों, आदिवासियों और जलजंगलजमीन पर निर्भर अन्य लोगों को उजाड़ना शुरू कर दिया था, जिसके विरुद्ध देशभर में असंतोष स्वतः स्पूर्त आन्दोलनों के रूप में व्यक्त भी होने लगा। दूसरी बार सत्ता में आने के बाद तो उसने बेरोकटोक विश्व बैंक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कार्पोरेट जगत के एजेंडे को लागू करना शुरू कर दिया है। इसकी शुरूआत सरकार द्वारा फिर से विनिवेश मंत्रालय के गठन करने और सार्वजनिक क्षेत्र की 40 बड़ी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने के निर्णय से समझी जा सकती है, जिनमें से 15 कंपनियों को चिन्हित भी कर लिया गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही इन 15 कंपनियों में से 10 मुनाफे पर चल रही हैं। सार्वजनिक कंपनियों के विनिवेश के जरिए सरकार ने 50,000 हजार करोड़ रुपए हासिल करने का लक्ष्य रखा है। सरकार का तर्क है कि सरकारी कंपनियों के निजीकरण से बजट घाटे की भरपाई की जाएगी। केन्दर सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय के लागू होने से पहले ही दिल्ली सरकार ने बस भाड़े में वृद्धि कर केन्दर सरकार के काम को सरल कर दिया है। बस भाड़े में वृद्धि से करीब एक महीने पहले मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा था कि डीटीसी को हो रहे घाटे की पूर्ति के लिए डीटीसी के किराए में वृद्धि आवश्यक हो गई है। बस भाड़े में हुई वृद्धि से दिल्लीएनसीआर के लोगों को कितनी मुश्किलें हुई हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है। लेकिन इसे डीटीसी को हो रहे घाटे और दिल्लीएनसीआर तक सीमित समझना बड़ी भूल होगी। क्योंकि यह भी दिल्ली सरकार की कार्पोरेट का फायदा पहुंचाने की ही रणनीति का एक हिस्सा है। बस भाड़े में वृद्धि करने के साथ ही दिल्ली सरकार ने राजधानी की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को कार्पोरेट के हवाले के करने की प्रक्रिया तेज कर दी। असल में दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने की जद्दोजेहद में शीला दीक्षित सरकार विधानसभा चुनाव से पहले से ही सार्वजनिक परिवहन निजी कंपनियों को सौंपने का मन बना चुकी थी। विधानसभा चुनाव के बाद तो उस पर निजी कंपनियों का दबाव भी ब़ गया था। लेकिन वह डीटीसी द्वारा लिए जा रहे किराए पर बसें चलाने को तैयार नहीं थीं। इस संबंध में दिल्ली सरकार और निजी कंपनियों के बीच जनवरी 2009 से ही वार्ता चल रही थी। लिहाजा सरकार ने जैसे ही 4 नवंबर को डीटीसी और एसटीए (राज्य परिवहन प्राधिकरण) के अधीन चल रही ब्लू लाइन इसों के किराए में वृद्धि की तो उसके 5 दिन बाद 9 नवंबर को सरकार ने राजधानी के सभी 17 यातायात कलस्टरों में आधी बसें निजी कंपनियों की चलवाने की घोषणा कर दी। इनमें से कलस्टर संख्या एक को तो स्टार बस सर्बिस प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को दे भी दिया। नई व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक कलस्टर के सभी रूटों में आधी बसें डीटीसी की और आधी किसी एक कंपनी की होंगी। वर्तमान ब्लू लाइन बसों को उसके रूटों से हटा दिया जाएगा। प्राइवेट कंपनियों को सरकार बस चलाने के लिए प्रति बसप्रति किमी’ के आधार पर निश्चित धनराशि का भुगतान करेगी और बस यात्रियों के टिकट से होने वाली आय सरकार की होगी यानी प्राइवेट बसों में भी डीटीसी की टिकट होगी। इसके अलावा प्राइवेट कंपनी को 20 प्रतिशत एसी बसें चलाने की अनुमति मिलेगी। निजी कंपनी को बसें चलाने की स्वीकृति निविदाएं आमंत्रित करके वार्षिक अनुबंध के आधार की दी जाएगी। इसी आधार पर कलस्टर संख्या एक पर स्टार बस सर्विस कंपनी के साथ अनुबंध हुआ है। आरके पुरम, आंबेडकर नगर से जुड़े इस कलस्टर में कुल 32 रूट हैं और वर्तमान समय में इन रूटों में 573 बसें चल रही हैं। अनुबंध के अनुसार आधी बसें सरकार की और आधी कंपनी की होंगी। इसके बदले सरकार प्रति बस प्रति किमी 47़50 रुपए की द्र से सालाना 85़77 करोड़ रुपए भुगतान करेगी। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में बराबरी की हिस्सेदार होने के बाद प्राइवेट कंपनियों के लिए सरकार में दबाव बनाना और अपनी जायजनाजायज मांगों को मनवाना सरल हो जाएगा। चूंकि अनुबंध एक साल के लिए होगा इसलिए हर दूसरेतीसरे साल बस भाड़े में वृद्धि और प्राइवेट कंपनियों को और सुविधाएं देना सरकार की मजबूरी हो जाएगी। साथ ही यह भी तय है कि शुरू में उपरी तौर पर यह व्यवस्था अधिक सुविधाजनक होगी देश के अन्य राज्यों और नगरों में भी इसे लागू करने की मांग ब़ जाएगी। शीला दीक्षित सरकार द्वारा कार्पोरेट को पहुंचाए जा रहे लाभ का यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि इससे दिल्ली की सड़कों में निजी वाहनों कार, स्कूटर, मोटर साइकिल आदि की संख्या ब़ जाएगी। रोजाना 1520 किमी से अधिक दूरी पर यात्रा करने वाले लोगों के लिए मोटर साइकिल और स्कूटर अधिक किफायती और सुविधाजनक हो जाएंगे। इसके अलावा जो लोग कार ख्रीदने और व्यवस्थित करने केी हैसियत रखने वाले हैं वे कार ख्रीद लेंगे। यानी दिल्ली सरकार ने किराया ब़ाकर ऑटोमोबाइल कंपनियों को भी लाभ पहुंचाया है। इससे दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक जाम की समस्या और बड़ जाएगी, साथ ही बहुमूल्य पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति की मुश्किलें और पयार्वरण प्रदूषण का खतरा भी ब़ जाएगा। जहां तक आम आदमी की बात है, जिसे गरीब कहा जाता है, दिल्ली के संदर्भ में जिन लोगों की मासिक आमदनी प्रतिमाह 5,000 रुपए से भी कम है वे या तो साइकिल पर उतर आएंगे या फिर पैदल चलने को मजबूर हो जाएंगे। लेकिन दिल्ली का यह दुर्भाग्य है कि यहां न तो साइकिल सवारों के लिए सुरक्षित ट्रैक है और न ही पैदल यात्रियों के लिए कोई जगह। राजधानी को विश्व स्तरीय शहर बनाने के प्रक्रिया में सरकार जो आधारभूत त्रांचा तैयार कर रही है उसमें भी उसमें भी चौड़ी सड़कें और लंबे फ्लाईओवर तो बनाए जा रहे हैं लेकिन साइकिल ट्रैक और फुटपाथ नहीं बनाए जा रहे। कुल मिलाकर बस भाड़े में वृद्धि कर सरकार ने प्राइवेट कंपनियों और पूंजीपतियों को हित पोषण किया है वहीं दूसरी ओर आम आदमी के लिए कई मुश्किलें पैदा कर दी हैं। इसका नकारात्मक असर उनके काम और आमदनी पर पड़ेगा। उनका अधिक समय आने जाने में लगेगा और आवागमन भी अधिक असुरक्षित हो जाएगा। आज भी जब एक आदमी सुबह काम पर निकलता है तो शाम को उसके सकुशल लौटने की कोई गांरंटी नहीं है। कोई अनियंत्रित कार, मोटर साइकिल, स्कूटर या फिर बस कब किसे अपनी चपेट में ले ले कुछ नहीं कहा जा सकता। तथ्य यह भी है कि दिल्ली में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं के शिकार सवार्धिक साइकिल चालक और पैदल ही होते हैं। जब सड़कों में मोटर वाहनों और साइकिल व पैदल यात्रियों की संख्या ब़ जाएगी तो तब क्या होगा, इसका अनुमान लगाना भी रोंगटे खड़ा कर देने के लिए काफी है। दिल्ली में देश के विभिन्न हिस्सों से रोजीरोटी की तलाश में आकर बसे लोगों की तादाद काफी अधिक है, जिनमें से बहुत बड़ी संख्या अनधिकृत कालोनियों में रहती है और रेहड़ीपटरी और तह बाजारी और फैक्टिरयों में नाममात्र के वेतन पर काम करके आजीविका चला रही है। दिल्ली सरकार पहले ही रेहड़ीपटरी पर प्रतिबंध लगाने और अनधिकृत कालोनियों के पुनर्निमार्ण के नाम पर उन्हें हटाने की योजना बना चुकी है। अब बस भाड़ा ब़ाकर और आवागमन को जोखिमपूर्ण बना देने से उसके सामने अपेक्षाकृत सुरक्षित जगह जाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। ऐसी दशा में उन्हें अपने खूनपसीने की कमाई से ख्रीदी गई जमीन और पेट काटकर बनाए गए मकान को औनेपौने दाम में बेचना उसकी मजबूरी हो जाएगी। इसका लाभ भी उन्हीं जमीन के कारोबारियों और बिल्डरों को होगा जिनका हित पोषण करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध दिखाई देती है। सोचने की बात यह है कि शीला दक्षित सरकार ने बस भाड़ा ब़ाकर प्राइवेट कंपनियों और पूंजीपतियों को कितना लाभ पहुंचाया है और जन सामान्य के लिए कितनी मुश्किलें पैदा कर दी हैं। केन्दर सरकार इसमें हस्तक्षेप कर आम आदमी के हित में कोई फैसला करेगी इसकी उम्मीद भी नहीं है क्योंकि वह स्वयं प्राइवेट कंपनियों का हित पोषण करने में लगी हुई है। अलबत्ता कांगरेस का नारा आज भी वही है कांगरेस का हाथ़़़, थोड़ा संदर्भ जरूर बदल गया है। उसका एक हाथ जो गरीब के साथ है वह उसकी गरदन पर है और दूसरा सरकारी खजाने व देश की संपत्ति से प्राइवेट कंपनियों की तिजोरी भरने में लगा हुआ है। लेकिन प्रश्न यह है कि इन्दिरा गांधी द्वारा देश पर गरीब विरोधी नीतियां थोपे जाने से देश के छात्रयुवा सड़कों पर उतर आए थे और समगर क्रांति का आगाज हुआ था क्या इस बार भी ऐसी कोई संभावना नजर आती है?

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