पहले ई-रिक्शा की श्रेणी तो तय करें गडकरी साहब

केन्द्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्राी नितिन गडकरी ने देश की परिवहन व्यवस्था को विश्व स्तरीय बनाने के लिए प्रतिब( हैं। प्रतिदिन 25 किलोमीटर सड़क का निर्माण करने के लिए भूमि अध्ग्रिहण कानून और मोटर वाहन कानून में संशोध्न उनकी प्राथमिकता है। मौजूदा मोटर वाहन कानून को अत्यंत पिछड़ा बताते हुए श्री गडकरी ने अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन और जापान की रिसर्च रिपोर्टों के अनुरूप नया मोटर वाहन कानून बनाने की बात कही है। इस कानून में 10 लाख से अध्कि आबादी वाले देश के 60 शहरों को इलैक्ट्रोनिक प्रणाली के दायरे में लाया जाएगा, जिससे कानून तोड़ने वाले के विरु( तुरंत कार्रवाही हो सकेगी।
इसके साथ ही परिवहन मंत्राी ने शहरों की आंतरिक परिवहन व्यवस्था में सुधार के लिए पं. दीन दयाल उपाध्याय के नाम से ‘दीन दयाल ई-रिक्शा योजना’ शुरू करने की घोषणा की है। इस योजना के तहत 650 वाट तक की बैटरी से संचालित इलैक्ट्रिक मोटर वाले ‘ई-रिक्शा’ चलाए जाएंगे, ये रिक्शे चार सवारी ले जा सकेंगे और उन्हें 25-25 किलो के दो नग यानी 50 किलो भार साथ ले जाने की अनुमति होगी। इन रिक्शों को चलाने के लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं होंगी। बड़े शहरों में नगर निगम और छोटे शहरों में नगर परिषद में 100 रुपए शुल्क से उनका रजिस्ट्रेशन होगा। यही नहीं ई-रिक्शा चालकों को 3 प्रतिशन ब्याज पर )ण भी उपलब्ध् कराया जाएगा। परिवहन मंत्राी का दावा है कि ‘दीन दयाल ई-रिक्शा योजना’ से लगभग 2 करोड़ लोगों का पफायदा होगा।
परिवहन मंत्राी की ये योजनाएं जब बनेंगी तब बनेंगी लेकिन उनकी इस घोषणा के बाद पिछली सरकार द्वारा अवैध् घोषित ई-रिक्शा दिल्ली की सड़कों पर बेध्ड़क दौड़ने लगे है। ई-रिक्शा के कारण हुई दुर्घटनाओं के चलते पिछली सरकार ने उन्हें अवैध् करार दिया था। केन्द्रीय परिवहन एवं भूतल मंत्रालय द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट, जिसमें 80 प्रतिशत लोगों ने इस वाहन को असुरक्षित माना था, के आधर पर 24 अप्रैल 2014 को ई-रिक्शा को अवैध् घोषित कर दिया था। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली महानगर में करीब डेड़ लाख ई-रिक्शा है। हालांकि इस वाहन को अवैध् घोषित किए जाने के बाद भी ये चोरी-छिपे चलते रहे और यातायात पुलिस उनकी ध्रपकड़ करती रही। लेकिन 17 जून को आयोजित ई-रिक्शा चालकों की रैली में श्री गडकरी द्वारा की गई घोषणा के बाद महानगर की सड़कों पर ई-रिक्शा बेध्ड़क दौड़ने लगे हैं, जबकि इस संबंध् में दिल्ली हाई-कोर्ट में दायर याचिका का अभी पफैसला आना है।
श्री गडकरी ई-रिक्शा की पैरवी करने वाले पहले राजनेता नहीं हैं। इससे पहले दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्राी अरविंद केजरीवाल ने उप राज्यपाल नजीब जंग से ई-रिक्शा को अवैध् घोषित करने वाले आदेश को वापस लेने की मांग की थी और आम आदमी पार्टी के तीन विधयकों ने हजारों ई-रिक्शा चालकों को लेकर उप राज्यपाल सचिवालय के बाहर प्रदर्शन भी किया था। लेकिन आम आदमी पार्टी द्वारा प्रचारित इस मुद्दे को हथियाने की होड़ में लगे भाजपा नेताओं द्वारा आयोजित ई-रिक्शा चालकों की रैली को संबोध्ति करते हुए परिवहन मंत्राी यह भी भूल गए कि जो बात वह कह रहे हैं वह कानून सम्मत है भी या नहीं।
पिछले दो दशकों से देशभर में ‘समान सड़क अध्किार’ के लिए संघर्षरत एवं इंस्टीट्यूट पफाॅर डेमोंक्रेसी एण्ड ससटेंनेब्लीटी के निदेशक डाॅ. राजेन्द्र रवि कहते हैं, ‘‘गडकरी साहब ई-रिक्शा के बारे में गैर कानूनी बात कह रहे हैं।  एक ओर वह नया मोटर वाहन कानून बनाने की बात करते हैं और दूसरी ओर ई-रिक्शा का स्टेट्स तय किए बिना उसमें कोई रोक न लगाने की घोषणा करते हैं।’’
डाॅ. रवि कहते हैं कि असली मुद्दा ई-रिक्शा की श्रेणी को लेकर है यानी उसके एन.एम.वी. ;गैर मोटर वाहनद्ध की श्रेणी में होने या न होने का है। यदि वह मोटर वाहन है तो निश्चित ही उसकी स्पीड होगी, स्पीड है तो दुर्घटनाओंकी संभावनाएं, आकलन और बचाव के पैरामीटर होंगे। किसी भी मोटर वाहन को चलाने के लिए लाइसेंस देते समय इन्हीं बातों को ध्यान में रखा जाता है। साइकिल रिक्शा और आॅटो रिक्शा के बीच भी यही पफर्क है। ई-रिक्शा किस श्रेणी में आता है, यह अभी तक यह नहीं है। पिछली सरकार ने जब ई-रिक्शा को अवैध् घोषित किया था तो 250 वाट की बैटरी से चलने वाले ई-रिक्शा की स्पीड 30 किमी प्रति घंटा बताई गई थी। दिल्ली की सड़कों में सार्वजनिक बसों की स्पीड भी लगभग इतनी ही रहती है। जबकि श्री गडकरी 650 वाट की बैटरी तक के ई-रिक्शा को बिना किसी लाइसेंस से और सामान्य रजिस्टेªशन से चलाने की बात कह रहे हैं। यों भी देश में सड़क दुर्घटनाएं एक बड़ी चिंता का कारण रही हैं। इससे शहरों में सड़क दुर्घटनाएं और बढ़ जाएंगी और कानून तोड़ने वाले जिम्मेदार लोगों को सजा दे पाना भी मुश्किल होगा।
दूसरा सवाल रोजगार के अवसरों को लेकर है। श्री गडकरी का दावा है कि ‘दीन दयाल ई-रिक्शा योजना’ से देशभर में दो करोड़ लोगों का पफायदा होगा। सामान्य सी बात है, एक साइकिल रिक्शा मुख्यतः दो और मुश्किल से तीन सवारी लेकर चलता है जबकि ई-रिक्शा कम से कम चार और सामान्यतः 7 सवारी लेता है। स्पष्ट है कि जहां 100 साइकिल रिक्शा चलते हैं उन्हें हटा दिया जाए तो वहां 50 से कम ई-रिक्शा रह जाएंगे। इसके साथ साइकिल रिक्शों का निर्माण छोटे स्तर पर होता है, जिसमें श्रम शक्ति का अध्कि उपयोग होता है और अध्कि लोगों को रोजगार मिलता है। ई-रिक्शा बड़ी कंपनियां बनाएंगी जो कि मोटर और बैटरी बनाती हैं। यानी रोजगार के अवसरों में दोहरी कटौती।
तीसरा मसला रिक्शों का इस्तेमाल करने वाले लोगों की सुविध का है। रिक्शे का इस्तेमाल लोग मुख्यतः बस स्टाॅप या रेलवे/ मेट्रो स्टेशन से अपने गंतव्य - घर, दफ्रतर आदि तक के लिए करते हैं। साइकिल रिक्शा चूंकि दो सवारी लेकर चलता है, एक सवारी होने पर वह अध्कितम दोगुना किराये पर कहीं भी आ या जा सकता है। ई-रिक्शा पहले तो अकेली सवारी लेगा नहीं यदि लेगा तो 4 से 6 गुना अध्कि किराए की मांग करेगा। ऐसी स्थिति में लोग या तो पैदल जाना चाहेंगे या पिफर आॅटो रिक्शा लेंगे जो कि ई-रिक्शा से अध्कि आरामदायक और सुरक्षित है।
चूंकि गडकरी साहब देश की परिवहन व्यवस्था को विश्व स्तरीय बनाना चाहते हैं और शहरों से पिछली सदी के प्रतीक साइकिल रिक्शा को हटाना चाहते हैं तो वह ‘दीन दयाल ई-रिक्शा योजना’ के तहत देशभर में ई-रिक्शा चला सकते हैं। लेकिन इससे न तो आए दिन होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में कमी आने वाली है न रोजगार के अवसर बढ़ने वाले हैं और न ही रिक्शे की सवारी करने वाले लोगों की सुविध में बढ़ोत्तरी होने वाली है। इसी तरह का एक प्रयोग दिल्ली की सड़कों से साइकिल रिक्शों को हटाने के लिए शीला दीक्षित सरकार ने ‘इंवायरमेंट प्रफैडली’ रिक्शा चलाकर की थी। उसमें भी बैटरी से चलने वाली मोटर लगी थी लेकिन वह योजना कारगर नहीं हुई। देखना यह है कि नई सरकार की देशव्यापी ई-रिक्शा योजना कितनी कारगर हो पाती है।

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