डिप्रेशन के शिकार भारत में सबसे अध्कि

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा डिप्रेशन (अवसाद) के शिकार भारत में हैं। डिप्रेशन के मामले में भारत ने दुनिया के सभी देशों को पछाड़ कर टॉप किया है। वैसे खबर तो दिल दुखाने वाली हैं लेकिन जानना भी जरूरी है कि आखिर हम लोग क्यों इतना डिप्रेशन में हैं। यह हर भारतीय के लिए चिंता का विषय है कि आखिर क्यों हम इतना डिप्रेशन में।
विशेषज्ञों के अनुसार खर्चों की लंबी होती लिस्ट और जेब में आते कम पैसे तनाव का अहम् कारण है। हर आदमी इसी फिक्र में मरा जा रहा है कि सैलरी कम क्यों है और खर्च कम कैसे करें। दूसरी तरफ बेरोजगार आदमी की अपनी टेंशन है। काम मिलता नहीं, लेकिन पेट रोटी मांगता है। सरकार की रोजगार देने की योजनाएं महज दिखावा साबित होती हैं जब बेरोजगार आदमी की ट्रेन से कटकर मरने की खबर आती है।
इस मुद्दे को हलके में लेने का प्रयास न करें। ट्रैफिक जाम भारत के हर दूसरे व्यक्ति को जानलेवा लगता है। जाम में फंसे आदमी का हर पल तीन घंटे के समान गुजरता है। जाम में फंसकर कई योजनाएं दम तोड़ देती हैं। कई डील हाथ से निकल जाती हैं। प्यार की पुकार पर दौड़ा जा रहा प्रेमी जाम की चपेट में आकर असहाय महसूस करता है। सर्वे कहता है कि नौकरी पेशा आदमी अपने जीवन के 7 साल ट्रैफिक जाम में गुजार देता है।
गैस का कनेक्शन चाहिए या ड्राइविंग लाइसेंस। हर जगह घूस की मारामारी। सरकारी अफसर के पल्ले पड़कर डिप्रेशन का शिकार होना तय है। भारत के सरकारी कर्मचारी उस कीड़े की तरह हैं जो रुक-रुक कर काटता है और लगातार खून चूसता रहता है। अगर सरकारी कार्यालयों में एक बार जाने पर ही काम हो जाए तो हमारे जीवन के 1300 दिन बचेंगे।

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