सही उपचार से ही शत-प्रतिशत स्वस्थ रह सकता है मनुष्य

कोई भी व्यक्ति सिर्फ एक रोग का उपचार करके पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो सकता। इसके लिए रोग के कारणों को पूरी तरह समाप्त करना होता है, बाहरी ही नहीं रोग के अन्दरूनी को भी समाप्त करना पड़ता है, तभी मनुष्य शत-प्रतिशत स्वस्थ होकर जीवन यापन कर सकता है।

यह कथन अत्याधुनिक स्वास्थ्य शिक्षा की डिग्री प्राप्त किसी विशेषज्ञ डॉक्टर का नहीं बल्कि अनौपचारिक रूप में होम्योपैथी के अनुसंधानकर्ता श्री सागर का है। हालांकि लोग उन्हें डॉक्टर साहब कहकर संबोधित करते हैं लेकिन वह जब भी किसी व्यक्ति का उपचार करते हैं तो स्वयं स्पष्ट शब्दों मंें लोगों को बता देते हैं कि वह कोई डिग्री या डिप्लोमधारी डॉक्टर नहीं हैं। वस्तुतः उन्होंने पिछले एक दशक के दौरान कैंसर, अल्सर, ऑर्थोपैडिक आदि बीमारियों से ग्रस्त ऐसे रोगियों का सफलतापूर्वक उपचार किया है, जिनके बारे में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), आर.आर. हॉस्पीटल, इन्द्रप्रस्थ अपोलो आदि प्रतिष्ठित और सुविधा संपन्न अस्पतालों के विशेषज्ञों ने हाथ खड़े कर दिए थे। स्वाभाविक रूप में ऐसे लोग उन्हें ‘भगवान’ मानते हैं।

हम बात कर रहे हैं, बिहार के मधेपुरा जिले के सिंहेश्वर स्थान में जन्मे 33 वर्षीय सागर की, जो वर्तमान समय में शिक्षा मंत्रालय में लिपिक पद पर कार्यरत हैं और पिछले 15-16 सालों से होम्योपैथी पर अनुसंधान कर रहे हैं। इस बीच उन्होंने दर्जनों असाध्य रोगों से ग्रस्त लोगों का उपचारकर उन्हें नया जीवन दिया है।

होम्योपैथी के प्रति अपने लगाव के बारे में बताते हुए सागर कहते हैं, ‘‘ जब मैं 9-10 में पढ़ता था तो हमारे पड़ोस के कुछ बच्चों को जौंडिस (पीलिया) हो गया था, उसका असर इतना अधिक था कि पटना, दिल्ली और मुंबई में उपचार के लिए ले जाने के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका। तब मेरे मन में यह विचार उठा था कि मुझे ऐसे बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए। लेकिन उसी दौरान मेरी तबियत खराब हो गई, मैं भयंकर रूप से बीमार पड़ गया। मेरी बीमारी को डॉक्टरों ने लाइलाज बता दिया था। पिताजी (वीरेन्द्र मिश्र) होम्योपैथी के जानकार थे, उन्होंने कोलकाता से इसकी शिक्षा ली थी और निरंतर उसके अनुसंधान में लगे रहते थे। पिताजी ने स्वयं मेरा इलाज करना शुरू किया। उससे मेरे स्वास्थ्य में कुछ सुधार तो हुआ। लेकिन मैं पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो सका। मैं अपने ऊपर होम्योपैथी दवाइयों की आजमाईश करने लगा, जिससे मेरी स्थिति कई बार जटिल हो जाती थी। धीरे-धीरे मैंने पिताजी से दवाइयों की कंपोजिशन सीख ली और उनका अपने ऊपर ही प्रयोग करने लगा।

इस तरह सागर करीब 7-8 वर्षों तक होम्योपैथी का प्रयोग अपने ऊपर करते रहे। इससे उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि कोई भी बीमारी एक रोग के उपचार से ठीक नहीं हो सकती। वर्ष 2000 में वह एसएससी परीक्षा उत्तीर्णकर शिक्षा मंत्रालय में नियुक्त होग ये तो उन्होंने होम्योपैथी के अनुसंधान को तेजकर दिया। साथ वह अब अपने अध्ययन और प्रयोग को अमल में लाने पर विचार करने लगे।

अपने पहले उपचार के बारे में बताते हुए सागर कहते हैं, ‘‘ करीब 9 वर्ष पहले एक मित्र के माध्यम से उनकी मुलोकात दिल्ली कैंट में रहने वाली बाला देवी से हुई, तब उनकी उम्र 35 वर्ष थी। बाला देवी अल्सर से पीड़ित थीं, उस समय उन्हें 15 दिनों से भयंकर बुखार था। मैंने उन्हें एक खुराक खाने को दी, ककरीब आधे घंटे में उनका बुखार उतर गया। उनकी बीमारी को आर. आर. हॉस्पीटल के डॉक्टरों ने लाइलाज बता दिया था, उनके पति बुरी तरह नाउम्मीद हो गये थे। उन्होंने मेरे से अपनी पत्नी का उपचार करने को कहा। मैंने अपने बारे में उन्हें सबकुछ बताया और कहा कि मैं कोई डॉक्टर नहीं हूॅं, दवइयों को गलत असर भी हो सकता है। उन्होंने इसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और मैंने बाला देवी का उपचार शुरू कर दिया। दो वर्ष तक उन पर मौत का छाया बना रहा। धीरे-धीरे दवाइयों का असर होने लगा और वह स्वथ होने लगी। आज वह न केवल जीवित हैं बल्कि स्वस्थ भी हैं। उसके बद मैंने अल्सर सेपीड़ित उनकी बेटी और मानसिक रोग से ग्रस्त उनके बेटे का उपचार किया वे दोनों आज पूरी तरह स्वस्थ हैं।

आप किन बीमारियों का उपचार करते हैं? यह पूछने पर सागर कहते हैं, ‘‘ उपचार ते मैं सभी बीमारियों का करता हूॅं लेकिन मेरे पास अधिकतर वे ही रोगी आते हैं जिनका रोग असाध्य स्थिति में पहुंच गया हो और बड़े-बड़े अस्पतालों ने हाथ खड़े कर दिये हों।
रोगी के डाइग्नोसिस और उपचार के तरीकों के बारे में सागर कहते हैं, ‘‘ मेरे पास रोगी तमाम अस्पतालों की ठोकरें खाने और जीवन से नाउम्मीद होने के बाद आते हैं। मुझे उनके मनोभावों, शरीर के रूप-रंग और अंगों की दशा से रोग को समझने में कठिनाई नहीं होती है। मैं उपचार के लिए अधिक दवाएं भी नहीं देता। पहली बार स्वयं देने के बाद 40-45 दिन तक कोई दवा नहीं देता, आगे भी यह क्रम बना ही रहता है।

आश्चर्य की बात तो यह है कि असाध्य रोगों का उपचार करने और रोगियों को नया जीवन देने के बावजूद सागर किसी रोगी से कोई शुल्क (फीस) नहीं लेते। यहॉं तक कि दवाइयों का व्यय भी स्वयं करते हैं। सागर कहते हैं, ‘‘ मैं चाहता हूॅं कि सभी स्वस्थ जीवन यापन करें। सही उपचार और रोग के कारणों को खत्म करके मनुष्य शत-प्रतिशत स्वस्थ रह सकता है। मेरा सपना एक ऐसा स्वास्थ्य केन्द्र खोलने का है जहॉं विभिन्न रोगों और उनके निदान के लिए अनुसंधान हो और प्रत्येक व्यक्ति को निःशुल्क न सही न्यूनतम शुल्क में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो सके।

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1 टिप्पणियाँ

  1. सागर जी को कोटि कोटि प्रणाम ! सागर जी ! अप जैसे लोगों से ही यह धरती टिकी हुई है, इश्वर करे आपकी साधना चलती रहे और आप इसी तरह से असाध्य रोगों पर काबू पाते रहें ..इश्वर आपको लम्बी उम्र दे ...
    जय हो

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